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70 करोड़ बनाने में, ब्लास्ट में 20 करोड़ खर्च…

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नोएडा: उत्तर प्रदेश के नोएडा में रविवार को ट्विन टावर गिरा दिया जाएगा। छह महीनों से जारी कवायद। सुप्रीम कोर्ट की ओर से लगातार निगरानी। हर सुनवाई पर टावर तोड़ने की प्रक्रिया की प्रगति रिपोर्ट और नोएडा अथॉरिटी की ओर से पिछले करीब एक साल में इसको लेकर सक्रियता। इन सबका रिजल्ट रविवार को दोपहर बाद 2.30 बजे आ जाएगा। यह देश के रीयल इस्टेट सेक्टर और बायर्स के बीच की ऐसी लड़ाई थी, जिसमें आम लोग भी भावनात्मक रूप से जुड़ते चले गए। अपने फायदे के लिए रियल इस्टेट सेक्टर ने नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों के साथ भ्रष्टाचार किया और इमारत की ऊंचाई बढ़ती चली गई। जैसे-जैसे टावर की ऊंचाई बढ़ी, विवाद की उतना ही लंबा होता चला गया। मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। जांच हुई। नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों का भ्रष्टाचार सामने आया। अब इस टावर को रविवार को विस्फोट में उड़ा दिया जाएगा। 70 करोड़ की लागत से बनी इस इमारत को ध्वस्त करने में करीब 20 करोड़ रुपये का खर्च आ रहा है। करीब 3 साल में बनकर तैयार हुए इस टावर को महज 9 सेकेंड में 3700 किलोग्राम विस्फोटक जमींदोज कर देगा। इससे निकलने वाले मलबे को हटाने में ही करीब तीन माह का समय लगने की आशंका जताई गई है। आप तस्वीर में जो मशीन देख रहे हैं, वह डेटोनेटर का स्विच है। यह स्विच जिस शख्स के हाथ में है, उनका नाम चेतन दत्ता है। पीले घेरे में जिस लाल स्विच को देख रहे हैं, उसे दबाते ही 32 मंजिला ट्विन सेकेंडों में जमीन पर बिखड़ा नजर आएगा।

निर्माण में लगे थे तीन साल, ढहने में लगेंगे 9 सेकेंड
देश में विध्वंस होने वाली बिल्डिंग बनने जा रही ट्विन टावर के निर्माण में करीब तीन साल का समय लगा था। लेकिन, जब इस भवन में लगे बारूद में विस्फोट होना शुरू होगा तो पूरी बिल्डिंग को जमीन पर आने में महज 9 सेकेंड लगेंगे। 32 मंजिला एपेक्स और 29 मंजिला सियान टावर के निर्माण में कुल 70 करोड़ रुपये के खर्च का अनुमान जताया गया है। मतलब, प्रति वर्ग फीट का निर्माण करने में 933 रुपये का खर्च बिल्डर को आया। वहीं, इसको ढहाए जाने में 20 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। इस लिहाज से देखें तो 237 रुपये वर्ग फीट का खर्च आता दिख रहा है। ट्विन टावर में 915 अपार्टमेंट का निर्माण किया गया। वहीं, 21 कॉमर्शियल शॉप बनाए गए थे। दोनों टावर में दो बेसमेंट पार्किंग के लिए बनाए गए थे। इस टावर में कई बायर्स ने अपना फ्लैट बुक कराया था। उन्होंने भी कोर्ट में लंबी लड़ाई लड़ी है।

सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट प्रोजेक्ट बिकने वाले अपार्टमेंट की दर 7500 रुपये वर्गफीट रही है। अगर इसी को आधार मान लें तो ट्विन टावर में थ्री बीएचके फ्लैट की कीमत 1.13 करोड़ रुपये बैठती है। इस हिसाब से 915 फ्लैट की बिक्री से होने वाली आय को देखा जाए तो कुल 1198 करोड़ का प्रोजेक्ट बैठता है। हालांकि, अब यह बिल्डिंग मलबे का ढेर बनने जा रही है।

मलबे से निकलेगा विध्वंस पर लगने वाला खर्च
ट्विन टावर का निर्माण करने वाली दिवालिया हो चुकी है। ऐसे में कंपनी ने विध्वंस का भी पूरा खर्च उठाने में असमर्थता जताई थी। सुपरटेक की ओर से विध्वंस मद में 4.5 से 5.5 करोड़ रुपये की राशि दिए जाने की बात कही गई है। बाकी का करीब 14.5 से 15.5 करोड़ रुपये की राशि मलबे को बेचकर निकाली जाएगी। वर्ष 2014 में सुपरटेक के आरके अरोड़ा ने ट्विन टावर को लेकर बड़ा बयान दिया था। उन्होंने बताया था कि इस बिल्डिंग के निर्माण पर 70 करोड़ रुपये का खर्च आया है। घर खरीदने वालों से कंपनी ने 180 करोड़ रुपये जुटाए थे। ट्विन टावर्स के 633 फ्लैट बुक हो चुके थे। अब उन्हें घर खरीदने वालों को 12 फीसदी ब्याज के साथ राशि लौटाने का आदेश जारी किया गया है।

क्या है ट्विन टावर के भ्रष्टाचार की गाथा?
ट्विन टावर ध्वस्त होने जा रहा है तो हर कोई सवाल कर रहा है कि आखिर यह क्यों टूट रहा है? इस मामले में क्या हुआ था? इसका जवाब है कि नोएडा के ट्विन टावर निर्माण में व्यापक पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ था। नोएडा अथॉरिटी के अधिकारियों ने रियल इस्टेट कारोबारी के साथ मिलकर भ्रष्टाचार किया। भ्रष्टाचार की इस गाथा की शुरुआत का साल है आज से करीब 18 साल पहले वर्ष 2004। नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर 93ए में ग्रुप हाउसिंग के प्लॉट नंबर 4 का आवंटन 23 नवंबर 2004 को एमराल्ड कोर्ट को कर दिया। ग्रुप हाउसिंग सोसायटी को नोएडा अथॉरिटी की ओर से 14 टावर निर्माण के नक्शे का आवंटन किया गया।

ग्रुप हाउसिंग सोसायटी में सभी 14 टावरों के लिए जी+9 यानी ग्राउंड फ्लोर के साथ 9 मंजिला पास किया गया। इसके बाद शुरू हुआ बिल्डर और अथॉरिटी के बीच का खेल। करीब 2 साल बाद 26 नवंबर 2006 को अथॉरिटी ने ग्रुप हाउसिंग सोसायटी के नक्शे में पहला संशोधन किया। बिल्डर को दो मंजिल और निर्माण की मंजूरी दे दी गई। मतलब, सभी 14 टावर में अब 9 की जगह 11 मंजिल का निर्माण करने की अनुमति दे दी गई। फिर दो और टावर निर्माण की मंजूरी दी गई। टावर 15 और टावर 16 को भी 11 मंजिली इमारत के निर्माण का नक्शा दिया गया। टावर की ऊंचाई 37 मीटर निर्धारित की गई थी।

टावरों के निर्माण योजना में लगातार बदलाव हो रहे थे। इसी क्रम में 26 नवंबर 2009 को ग्रुप हाउसिंग सोसायटी के टावर नंबर 17 का नक्शा पास किया गया। टावर नंबर 16 के नक्शे में संशोधन किया गया। नए नक्शे के मुताबिक, टावर नंबर 16 और 17 के 24 मंजिला निर्माण की मंजूरी दी गई। अब इसकी ऊंचाई 73 मीटर निर्धारित की गई। मामला यहीं नहीं थमा। भ्रष्टाचार की पेट जैसे-जैसे भरी जा रही थी, टावर की ऊंचाई उसी हिसाब से बढ़ती जा रही थी। टावर के नक्शे में तीसरा संशोधन 2 मार्च 2012 को किया गया। नए संशोधन के तहत टावर नंबर 16 और 17 के लिए फ्लोर एरिया रेशियो बढ़ा दिया गया। नए एफएआर के तहत दोनों टावरों की ऊंचाई 40 मंजिला करने की इजाजत दे दी गई। नए संशोधन के बाद बिल्डिंग की ऊंचाई 121 मीटर तय की गई।

ऐसे भड़का पूरा विवाद
ट्विन टावर का पूरा विवाद दो टावरों के बीच की दूरी कम होने को लेकर भड़का। टावरों की ऊंचाई बढ़ रही थी तो अन्य टावर में रहने वाले लोगों की मुश्किलें भी बढ़ने लगी। हवा का बहाव रुका। बढ़ते फ्लोर के कारण प्राइवेसी की समस्या आई। रेजिडेंट्स ने रेसिडेंशियल वेलफेयर सोसायटी (RWA) की बैठक में ट्विन टावर की बढ़ती लंबाई का मुद्दा उठाना शुरू किया। इस मामले को सोसायटी के अध्यक्ष उदय भान सिंह विस्तार से बताते हैं। वे कहते हैं कि ग्रुप हाउसिंग सोसायटी के टावर नंबर एक और ट्विन टावर के बीच 9 मीटर से भी कम की दूरी है। बिल्डर की ओर से जिस स्थान को पहले ओपन स्पेस के रूप में बताया गया, वहीं पर आज ट्विन टावर खड़ा है। उनका कहना है कि नेशनल बिल्डिंग कोड का नियम कहता है कि दो रेसिडेंशियल टावर के बीच 16 मीटर की दूरी होनी चाहिए। क्या टावर नंबर एक और ट्विन टावर के बीच इसे मेंटेन किया गया? नहीं किया गया।

ग्रुप हाउसिंग सोसायटी के टावर नंबर एक से 15 तक वर्ष 2008 में लोगों को फ्लैट आवंटित किए जा रहे थे। उस समय टावर 16 और 17 वाली जगह को ओपन स्पेस बता दिया गया। लेकिन, इसके बाद ट्विन टावर का निर्माण शुरू हो गया। टावर की बढ़ती लंबाई देख एमराल्ड कोर्ट सोसायटी के बायर्स ने रेसिडेंशियल वेलफेयर सोसायटी बनाई। ट्विन टावर निर्माण के खिलाफ लड़ाई लड़ने का निर्णय लिया गया। लोगों के विरोध के बाद बिल्डर की ओर से नक्शे में संशोधन कराए जाने का दावा किया जाता रहा। हालांकि, यह असलियत में नहीं था। फ्लैट खरीदने वालों और सोसायटी के विरोध के बाद भी निर्माण लगातार जारी रहा। यही टावर नंबर 16 और 17 आज के समय में ट्विन टावर है।

लेनी पड़ी कोर्ट की शरण
ट्विन टावर का लगातार अवैध निर्माण की शिकायत नोएडा अथॉरिटी से की गई। लेकिन, अथॉरिटी के अधिकारियों की पूरे मामले में मिलीभगत थी। बिल्डर से मिलकर मामले को दबाया जाता रहा। टावर निर्माण नहीं रुका तो बायर्स कोर्ट की शरण में चले गए। इलाहाबाद हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई शुरू हुई। कोर्ट ने वर्ष 2014 में ट्विन टावर को तोड़ने का आदेश जारी कर दिया। इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के बाद नोएडा अथॉरिटी के तत्कालीन सीईओ ने 1 सितंबर 2014 को पूरे मामले की जांच के लिए एक कमेटी का गठन किया। कमेटी ने 26 घंटे के भीतर ट्विन टावर से जुड़े मामले की जांच रिपोर्ट दी। अवैध तरीके से टावर की ऊंचाई बढ़ाए जाने के मामले में 12 से 15 अधिकारियों की संलिप्तता सामने आई। जांच चलती रही। फिर वर्ष 2021 में हाई लेबल कमेटी का गठन किया गया। कमेटी ने जांच कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। 4 अक्टूबर 2021 को इस रिपोर्ट के आधार पर नोएडा अथॉरिटी के 24 अधिकारी और कर्मचारियों पर एफआईआर दर्ज कराया गया।

बिल्डर ने सुप्रीम कोर्ट में दी थी चुनौती
इलाहाबाद हाई कोर्ट की ओर से वर्ष 2014 में ट्विन टावर को गिराए जाने के आदेश को बिल्डर ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले को सुना। इसके बाद 31 अगस्त 2021 को कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर ही मुहर लगा दी। कोर्ट ने अपने फैसले में तीन माह में ट्विन टावर को गिराने का आदेश दिया। हालांकि, कोर्ट के आदेश का अनुपालन नहीं हो पाया। नोएडा अथॉरिटी की ओर से तकीनीकी दिक्कतों का हवाला दिया गया। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने टावर को ढाहने की तारीख 22 मई 2022 कर दी गई। तैयारियां तब भी अधूरी ही थीं। सुप्रीम कोर्ट ने टावर गिराने वाली कंपनी को 3 महीनों का अतिरक्त समय दिया। नई तिथि 21 अगस्त 2022 कर दी गई। इस बार टावर गिराने वाली कंपनी एडिफिस इंजीनियरिंग को एनओसी न मिलने का पेंच फंसा। टावर गिराए जाने की तिथि एक सप्ताह और बढ़ी। अब 28 अगस्त को दोपहर बाद 2.30 मिनट पर इस टावर को विस्फोट में उड़ा दिया जाएगा।

देश में विध्वंस होने वाली सबसे ऊंची इमारत ट्विन टावर
28 अगस्त को ट्विन टावर गिराए जाने के बाद यह देश की सबसे ऊंची इमारत होगी, जिसे ढहाया जाएगा। इससे पहले इतने बड़े अवैध निर्माण को देश में कभी नहीं तोड़ा गया था। सुपरटेक ट्विन टावर्स के ब्लास्ट के लिए ग्रीन बटन दबाने वाले भारतीय ब्लास्टर चेतन दत्ता का दावा है कि यह एक सरल प्रक्रिया होगी। इसमें किसी प्रकार के नुकसान की आशंका नहीं है। ट्विन टावर ब्लास्ट के लिए 3700 किलोग्राम विस्फोटक का इस्तेमाल किया गया है। डायनेमो मशीन को प्रदर्शित करते हुए चेतन दत्ता ने कहा कि इससे करेंट उत्पन्न होगा। इसके बाद बटन दबाएंगे और यह 9 सेकेंड के भीतर बिल्डिंग में तमाम सर्किट को एक्टिवेट कर देगी। सीरीज विस्फोट में पूरी इमारत इसी 9 सेकेंड के भीतर धराशायी हो जाएगी।

ट्विन टावर्स की ऊंचाई कुतुब मीनार से भी अधिक है। ऐसे में यह जब धराशायी होगी तो इसका मलबा भी करीब साढ़े मंजिला ऊंचा होगा। दोनों बिल्डिंग के गिरने से 35 हजार क्यूबिक मीटर मलबा निकलेगा। इसको साफ करने में कम से कम तीन महीने लगेंगे।(साभार एन बी टी)

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