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आदेश के बावजूद देश में क्यों बैन नहीं हो रही पॉर्न साइट्स?

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सरकार ने देश में इंटरनेट सेवा उपलब्ध करवाने वाले सर्विस प्रोवाइडर्स से कहा है कि वे 827 पॉर्न वेबसाइट्स को ब्लॉक कर दें। यह आदेश तब आया है, जब उत्तराखंड के एक स्कूल में हुए रेप के बाद आरोपी ने खुलासा किया था कि उसने रेप से पहले पॉर्न साइट देखी थी। मामले की गंभीरता को देखते हुए उत्तराखंड हाई कोर्ट ने आदेश दिया था कि पॉर्न साइट्स को बंद किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट में पहले से इसे लेकर अर्जी है कि पॉर्न साइट्स बंद की जाएं लेकिन अभी तक ये बंद नहीं हुई हैं। सरकार ने भी सिर्फ चाइल्ड पॉर्नोग्रफी वाली साइट्स को बंद करने की बात मानी है। ऐसे में सवाल है कि भारत में पॉर्न साइट्स को क्यों बंद नहीं किया जा सका है?
‘कानून नाकाफी हैं’: पॉर्नोग्राफी साइट्स को ब्लॉक करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में 5 साल पहले याचिका दायर की गई थी। समय-समय पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए और सरकार ने ऐक्शन लेने की बात भी कही, लेकिन अभी तक इन साइट्स को पूरी तरह ब्लॉक नहीं किया जा सका है। सुप्रीम कोर्ट में इसको लेकर याचिका दायर करने वाले ऐडवोकेट कमलेश वासवानी ने बताया कि इंटरनेट को लेकर कोई कानून बना न होने से पॉर्न विडियो को बढ़ावा मिल रहा है। मार्केट में 20 लाख से ज्यादा पॉर्न विडियो उपलब्ध हैं और लाखों साइट्स हैं, जहां से इन्हें डाउनलोड किया जा सकता है। बच्चों पर ऐसे कंटेंट का गलत असर होता है।
पॉर्न साइट्स महिलाओं के प्रति अपराध को बढ़ावा दे रही हैं। ये तमाम बातें सुप्रीम कोर्ट के सामने रखी गईं। दरअसल आईपीसी के मौजूदा प्रावधान के जरिए पॉर्न साइट्स और विडियो को कंट्रोल करना मुश्किल है। वहीं सुप्रीम कोर्ट विमिन लॉयर्स असोसिएशन की प्रेसिडेंट महालक्ष्मी पवनी की ओर से भी 2015 में अर्जी लगाई गई थी। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पारित किया था। तब केंद्र सरकार ने 857 पॉर्नोग्राफी साइट्स 3 दिनों के लिए ब्लॉक की थीं, लेकिन बाद में कहा था कि यह संभव नहीं है और सिर्फ चाइल्ड पॉर्नोग्रफी वाली साइट्स को ब्लॉक करने की बात कही। अभी तक मामला पेंडिंग है। आईपीसी और आईटी ऐक्ट में जो प्रावधान हैं, उनके तहत पॉर्नोग्रफी को आगे बढ़ावा या शेयर करना या उसे स्टोर करना भी अपराध है। आईपीसी की धारा 292, पोक्सो ऐक्ट की धारा- 12 व 13 और आईटी ऐक्ट की धारा 67 व इंडीसेंट रिप्रजेंटेशन ऑफ वुमन ऐक्ट में पॉर्न और ऐसे कंटेंट को शेयर करना और स्टोर करना अपराध है। इसे देखने से रोकने के लिए एक ही उपाय है कि इस तरह की साइट्स को ब्लॉक किया जाए जो कि सरकार कर सकती है।
‘मॉरल पुलिसिंग कैसे करें’: पॉर्न बैन से जुड़ी सुनवाई में तत्कालीन अटॉर्नी जनरल ने दलील दी थी कि तमाम तरह की पॉर्न साइट्स को रोका जाना संभव नहीं है। यह व्यक्तिगत मामला है और सरकार मॉरल पुलिसिंग नहीं करना चाहती। कोई अगर घर में इसे देखता है तो कैसे रोका जा सकता है। हालांकि वासवानी बताते हैं कि डीएनएस और आईपी अड्रेस ब्लॉक हो सकता है। ऐसे सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं जिसके जरिए सर्वर के माध्यम से इसे ब्लॉक किया जा सकता है। केंद्र ने जब खुद चाइल्ड पॉर्नोग्रफी की साइट्स ब्लॉक करने की बात कही तो बाकी क्यों नहीं हो सकतीं। अगर नहीं ब्लॉक किया गया तो बच्चों पर गलत असर होगा।
ऐसे उठा था मामला: उत्तराखंड में एक स्कूल के चार नाबालिग छात्रों को स्कूली छात्रा के रेप में पकड़ा गया। पूछताछ में चारों लड़कों ने कहा कि उन्होंने पॉर्न साइट्स देखी थीं और उसके बाद घटना को अंजाम दिया था। इस मामले को उत्तराखंड हाई कोर्ट ने गंभीरता से लिया और अहम आदेश में कहा कि केंद्र सरकार पॉर्न साइट्स को बंद कराए। फिर केंद्र सरकार ने 827 पॉर्न साइट्स को बंद करने के आदेश दिए।

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