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5 कारण जिसके चलते बन सकते हैं कांग्रेस अध्यक्ष पद के उम्मीदवार

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भोपालः मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिग्विजय को पार्टी आलाकमान ने अचानक दिल्ली बुलाया है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा में व्यस्त दिग्विजय बुधवार देर रात केरल से दिल्ली पहुंचे। जानकारी के मुताबिक राजस्थान में जारी राजनीतिक खींचतान के चलते पार्टी नेतृत्व और खासकर गांधी परिवार मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से नाराज है। लगातार बदल रहे राजनीतिक घटनाक्रम के बीच दिग्विजय सिंह के गांधी परिवार की सहमति से अध्यक्ष पद का उम्मीदवार बनने की संभावना जोर पकड़ रही है। दिग्विजय पहले ही कह चुके हैं कि गांधी परिवार से कोई प्रत्याशी नहीं हुआ या उनकी पसंद का उम्मीदवार नहीं हुआ तो वे पार्टी अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ सकते हैं। मौजूदा परिस्थितियों में गहलोत के बाद वे दौड़ में सबसे आगे हैं क्योंकि गांधी परिवार उनके नाम पर राजी हो सकता है।

परिवार के करीबी
दिग्विजय सिंह साल 1987 से ही गांधी परिवार के करीबी रहे हैं, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष राजीव गांधी ने उन्हें बुलाकर एमपी कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया था। राजीव की मौत के बाद दिग्विजय, सोनिया गांधी के विश्वासपात्र बने और उन्हें राजनीति की बारीकियां समझने में मदद की। राजनीति में सोनिया की एंट्री का औपचारिक ऐलान दिग्विजय ने ही किया था। इसके बाद जब राहुल गांधी राजनीति में आए तो दिग्विजय उनके मार्गदर्शक की भूमिका में आ गए। बीच-बीच में कई नेताओं ने पार्टी में गांधी परिवार के खिलाफ आवाज उठाई, लेकिन दिग्विजय न केवल साथ खड़े रहे बल्कि विरोधियों के खिलाफ अपनी आवाज भी बुलंद करते रहे। वे अध्यक्ष बन भी गए तो इसकी संभावना बेहद कम है कि आगे चलकर गांधी परिवार के लिए चुनौती बनें या पार्टी में अलग पावर सेंटर बनने की कोशिश करें।

बीजेपी के मुखर विरोधी
दिग्विजय अपने बयानों के चलते अक्सर विवादों में रहते हैं क्योंकि वे बीजेपी और उसके हिंदुत्व के खिलाफ मुखर होकर बोलते हैं। बीजेपी नेता अक्सर उन्हें अल्पसंख्यक-समर्थक बताकर अपना निशाना बनाते हैं, लेकिन दिग्गी कभी अपना आपा नहीं खोते। वे हर आरोप का शालीन तरीके से, लेकिन मजबूती से जवाब देते हैं। दिग्विजय की छवि भी साफ है। उन पर कई बार भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए, लेकिन आज तक कुछ सिद्ध नहीं हुआ।

राजनीति का लंबा अनुभव
दिग्विजय दस साल तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वे लंबे समय तक प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष और पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रहे हैं। लोकसभा और राज्यसभा का सदस्य रहने के अलावा वे पार्टी की केंद्रीय कार्यसमिति के भी वर्षों से सदस्य हैं। वे कई राज्यों में कांग्रेस के प्रभारी रहे हैं। पार्टी के कई अभियानों में उनकी अहम भूमिका रही है। फिलहाल चल रही राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के भी वे इंचार्ज हैं। उनकी प्लानिंग और रणनीति का नतीजा है कि इस यात्रा को उम्मीद से ज्यादा समर्थन मिल रहा है।

पॉलिटिकल मैनेजमेंट के उस्ताद
मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते दिग्विजय सिंह ने एक बार कहा था कि चुनाव वोट से नहीं, पॉलिटिकल मैनेजमेंट से जीते जाते हैं। इसके कुछ महीने बाद हुए विधानसभा चुनाव में उन्होंने सभी पूर्वानुमानों को झुठलाते हुए कांग्रेस पार्टी को जीत दिलाई थी और लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने में सफल रहे थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया की कांग्रेस से विदाई का भले उन्हें बड़ा कारण माना जाता हो, लेकिन यह भी सच है दिग्गी राजा के समर्थन के बूते ही कमलनाथ भी मुख्यमंत्री बन सके। वे हर राजनीतिक चुनौती को मैनेज करने में सक्षम हैं, इसे कई बार साबित कर चुके हैं।

विरोधियों को भी साधने में सक्षम
दिग्विजय के हर राजनीतिक दल के नेताओं से अच्छे संबंध हैं। वे बीजेपी के धुर विरोधी हैं, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी को अक्सर गुरुदेव कहकर संबोधित करते थे। शरद पवार, ममता बनर्जी, के चंद्रशेखर राव जैसे विरोधी धड़े के नेताओं के अलावा एनडीए में शामिल कई दलों के नेताओं से भी उनके करीबी रिश्ते हैं। कांग्रेस अध्यक्ष चाहे कोई भी बने, 2024 के लोकसभा चुनाव के लिहाज से उसकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो सकती है। कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती विपक्षी पार्टियों को बीजेपी के खिलाफ लामबंद करना है। दिग्विजय के राजनीतिक संपर्क इस काम में उनकेलिए मददगार हो सकते हैं।(साभार एन बी टी)

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