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संविधान ने देश के नागरिकों को राजा बनाया:मोहन भागवत

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गोरखपुर
गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सर संघचालक मोहन भागवत उत्तर प्रदेश के गोरखुपर में हैं। यहां ध्वजारोहण के बाद उन्होंने कहा कि संविधान ने देश के हर नागरिक को राजा बनाया है। राजा के पास अधिकार हैं लेकिन अधिकारों के साथ सब अपने कर्तव्य और अनुशासन का भी पालन करें। तभी अपने बलिदान से देश को स्वतंत्र कराने वाले क्रांतिकारियों के सपनों के अनुरूप भारत का निर्माण होगा। ऐसा भारत जो दुनिया और मानवता की भलाई को समर्पित है।

इसके पहले संघ प्रमुख ने सूरजकुंड स्थित सरस्वती शिशु मंदिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय द्वारा आयोजित गणतंत्र दिवस समारोह में राष्ट्रध्वज फहराया। छात्र-छात्राओं और स्वयंसेवकों को सम्बोधित करते हुए उन्होंने राष्ट्रध्वज के तीनों रंगों का महत्व बताया। संघ प्रमुख ने कहा कि ये रंग ज्ञान, कर्म, भक्ति का कर्तव्य बताने वाले हैं। सबसे ऊपर भगवा रंग त्याग का, बीच का सफेद रंग पवित्रता और हरा रंग मां लक्ष्मी यानी समृद्धि का प्रतीक है। भगवा रंग देखते ही मन में सम्मान पैदा होता है। यह बताता है कि हमारा जीवन स्वार्थ का नहीं परोपकार का है। हमें कमाना है दीन दुखियों, वंचितों को देने के लिए। इतना देना है कि सबकुछ देने के बाद भी देने की इच्छा रह जाये। पवित्रता और शुद्धता जीवन में ज्ञान, धन और बल के सदुपयोग के लिए जरूरी है।

ज्ञान तो रावण के पास भी था लेकिन मन मलिन था। शुद्धता रहेगी तो ज्ञान का प्रयोग विद्यादान, धन का सेवा और बल का दुर्बलों की रक्षा के लिए होगा। हरा रंग समृद्धि का प्रतीक है। हमारा देश त्याग में विश्वास करता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि यहां दारिद्र्य रहेगा। समृद्धि चाहिए लेकिन हमारी समृद्धि अहंकार के लिए नहीं दुनिया से दुख और दीनता खत्म करने के काम आएगी। इस समृद्धि के लिए परिश्रम करना होगा। जैसे किसान परिश्रम करता है तभी अच्छी फसल पाता है, वैसे ही सब परिश्रम करेंगे तो देश आगे बढ़ेगा। भारत बढ़ेगा तो दुनिया बढ़ेगी।

तपस्वी और विद्वान नेताओं ने दिया संविधान
संघ प्रमुख ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को देश के स्वतंत्र होने के बाद देश के तपस्वी और विद्वान नेताओं ने भारत को उसके अनरूप तंत्र देने के लिए संविधान बनाया। 26 जनवरी 1950 को इसे लागू कर तय कर दिया गया कि भारत चलेगा तो अपने तंत्र से चलेगा। बाबा साहब ने संसद में संविधान को रखने के समय दो भाषण दिए जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमें किस प्रकार अनुशासन में रहना है।

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