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…लेकिन भीड़ को वोटो में तब्दील कर पाएंगी प्रियंका गांधी…

Politics

प्रियंका गांधी की राजनीति में सीधे तौर पर एंट्री से कांग्रेस पार्टी में अचानक एक उत्साह भर गया है। लंबे समय तक कांग्रेस का गढ़ रहे पूर्वी यूपी में जब पार्टी का प्रदर्शन लगातार गिरने लगा। इसके बाद प्रियंका गांधी को पार्टी का महासचिव बनाया गया और उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया। प्रियंका की एंट्री से पार्टी काडर में काफी उत्साह है। इससे साफ है कि वह भीड़ जुटाने में कामयाब होंगी, लेकिन क्या इस भीड़ को वोटों में तब्दील करने में उन्हें कामयाबी मिलेगी। यह जानने के लिए पूर्वी उत्तर प्रदेश के चार संसदीय क्षेत्रों का जायजा लिया गया।
जिसमे लखनऊ से 191 किमी दूर टांडा में अहमद नदीम की पान की दुकान पर सुबह के समय आने वाले लोकसभा चुनावों पर चर्चा चल रही थी। आम चुनाव क्योंकि नजदीक हैं तो इस चर्चाओं का दौर चलना लाजमी है। तभी चुनावों के साथ चर्चा का बिंदु प्रियंका गांधी हो गई। एक स्थानीय नागरिक वली अहमद का मनना है कि ऐसे दौर में प्रियंका की एंट्री से कांग्रेस को कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा। तभी उनकी बात काटते हुए उनके दोस्त राजेंद्र प्रसाद कहते हैं, ‘प्रियंका की एंट्री से कम से कम लोग कांग्रेस के बारे में बात तो करने लगे हैं। पार्टी पिछले चुनावों के मुकाबले काफी अच्छा प्रदर्शन करेगी।’
दरअसल अहमद का आकलन पिछले कुछ चुनावों में कांग्रेस के प्रदर्शन के आधार पर था। आंबेडकर नगर, 2009 में संसदीय क्षेत्र बना, (पहले अकबरपुर) एक दलित बाहुल्य लोकसभा सीट है, जहां से बीएसपी प्रमुख मायावती तीन बार सांसद रही हैं। कांग्रेस इस सीट से आखिरी बार 1984 में जीत थी।
राजेंद्र कुमार के मत से भी कई लोग सहमत थे। आंबेडकर नगर के इल्तिफतगंज के रहने वाले और उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमिटी के सदस्य रमेश मिश्रा कहते हैं, ‘प्रियंका पार्टी में चल रही दलाली पर रोक लगा सकती हैं। किसे टिकट मिले, यह सीनियर नेता तय करते हैं, लेकिन वे पार्टी में नेतृत्व की दूसरी पंक्ति तैयार ही नहीं होने देना चाहते हैं।’ कुछ पार्टी कार्यकर्ताओं का कहना है कि प्रियंका उन्हें उनकी दादी और देश की पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की याद दिलाती हैं। अकबरपुर के पास तुलसीगंज चौराहे पर 70 साल की माता प्रसाद कहती हैं, ‘प्रियंका गांधी अपनी दादी की सच्ची वारिस हैं।’
थोड़ा पूर्व में आजमगढ़ की तरफ बढ़ें, यहां आशावाद काफी हद तक मौन है। एक संगीत टीचर रवींद्र मिश्रा का कहना है, ‘प्रियंका की लीडरशिप में, कांग्रेस का वोटशेयर बढ़ सकता है, लेकिन यह काफी नहीं होगा।’ वहीं कुछ लोगों का कहना था कि प्रियंका का जादू एसपी और बीएसपी के तिलिस्म को तोड़ने के लिए नाकाफी है।
वहीं कुछ लोग इसे लंबे समय के लिए काफी अच्छा मान रहे हैं। आजमगढ़ के शिबली कॉलेज के एक सीनियर रिसर्च फेलो मोहम्मत उमेर का कहना है, ‘यह सच है कि कांग्रेस अपना पुराना आधार खो चुकी है, लेकिन जड़े अभी बाकी हैं। लोगों ने देखा है कि हाल ही में पार्टी ने कई राज्यों में अच्छा प्रदर्शन किया है।’
एक और संसदीय क्षेत्र, जिस पर पूरे देश की नजर रहने वाली है, वह है गोरखपुर। सीएम योगी आदित्यनाथ यहां से कई बार एमपी रहे हैं। यह सीट कांग्रेस के पास साल 1952 से 1967 तक रही। इसके बाद जब गोरखनाथ मठ ने स्थानीय राजनीति में भागीदारी बढ़ाई तो स्थिति बदल गई। महंत दिग्विजयनाथ ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और जीत गई। इसके बाद महंत अवैद्यनाथ ने चुनाव लड़ना शुरू किया और हर बार जीत दर्ज की। इसके बाद 1971 में कांग्रेस के पास फिर यह सीट आई और 1989 तक कांग्रेस के पास रही। इसके बाद महंत अवैद्यनाथ ने हिंदू महासभा के टिकट पर फिर से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की।
आज गोरखपुर कांग्रेस यूनिट के पास स्थायी दफ्तर भी नहीं है। कार्यकर्ता जिला प्रमुख राकेश यादव के घर पर मिलते हैं। यादव ने बताया कि पार्टी के पास जिले में 50 साल तक ऑफिस था लेकिन एक प्रॉपर्टी विवाद की वजह से हमें वह खाली करना पड़ा। उन्होंने कहा, ‘हम नए ऑफिस के लिए जगह खोज रहे हैं।’
गोरखनाथ मंदिर के परिसर में दुकान चलाने वाले लोग, चाहे हिंदू हों या मुसलमान, प्रियंका की एंट्री को बदलाव का भ्रम बनाने के सिवा कुछ और नहीं मानते हैं। मंदिर परिसर में अपने पिता की 30 साल पुरानी दुकान चलाने वाले आदित्य का कहना है, ‘कांग्रेस के चुनावी भाग्य पर इसका कोई असर नहीं होगा। प्रियंका या किसी के भी लिए यहां पार्टी को संभालना बेहद मुश्किल होगा।’
पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में ज्यादातर लोगों का मानना है कि प्रियंका को राजनीति में लाने का फैसला बेहद अच्छा है, लेकिन कांग्रेस ने इसमें देर कर दी है। अब एसपी-बीएसपी गठबंधन के बाद इस ऐलान का कोई फायदा नहीं होगा।
निषाद समुदाय से ताल्लुक रखने वाले प्रमोद माझी का कहना है, ‘देरी के बावजूद, कांग्रेस ने एक सही फैसला लिया है। यह फैसला पार्टी को बेहतर स्थिति में लाने में मदद करेगा। अब हम इंदिरा को उनकी दादी की तरह पूरी तरह ऐक्शन में देखना चाहते हैं।’
वहीं ग्रामीण वोटर इस फैसले को लेकर ज्यादा आशावादी नहीं हैं। मिलकीचाक गांव के रितेश्वरी नरेन कहते हैं, ‘यदि कांग्रेस एसपी-बीएसपी गठबंधन से पहले यह फैसला करती तो तस्वीर कुछ और हो सकती थी। अब किसी को भी प्रियंका से किसी चमत्कार की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। उन्हें संगठन को ठीक करने में ही काफी समय लग जाएगा।’

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