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हाई कोर्ट ने कहा, ‘बढ़नी चाहिए गर्भपात की वैध समय-सीमा’

From Court Room

मद्रास हाई कोर्ट ने गर्भपात कानूनों पर स्वतः संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) ऐक्ट, 1971 में जरूरी संशोधन कर गर्भपात की समय-सीमा 20 हफ्ते से 24 हफ्ते तक करने की तरफदारी की है। कोर्ट ने कहा है हर साल भारत में 17 लाख बच्चे जन्म विकारों के साथ पैदा होते हैं। ऐसे में गर्भपात के लिए वैध समय-सीमा को 20 हफ्ते से बढ़ाकर 24 हफ्ते करने की जरूरत है। कोर्ट ने इस दौरान मौजूदा कानूनों में संशोधन के पांच साल पुराने प्रस्ताव को गंभीरता से लेते हुए उसमें जरूरी सुधार के लिए केंद्र सरकार को जल्द ऐक्शन लेने के लिए कहा है।
2014 में लाया गया था संशोधन प्रस्ताव
बता दें कि मौजूदा एमटीपी ऐक्ट में संशोधन के लिए साल 2014 में प्रस्ताव लाया गया था। गर्भपात के लिए निर्धारित वैध समय सीमा को 20 हफ्ते से 24 हफ्ते करने के प्रस्ताव के पांच साल होने पर प्रकाशित रिपोर्ट में असामान्य नवजातों से उनके पैरेंट्स को होने वाली परेशानियों का जिक्र किया गया है। कोर्ट ने कहा है कि ग्रामीण इलाकों में गर्भपात के लिए निर्धारित 20 हफ्ते की समय-सीमा असुरक्षित गर्भपात को बढ़ावा दे रही हैं। इसके अलावा कोर्ट ने गर्भवती बलात्कार पीड़िताओं की दुर्दशा पर भी सरकार का ध्यान दिलाया है।
डॉक्टरों ने भी बताई समय-सीमा बढ़ाने की जरूरत
कोर्ट ने कहा है कि ऐसे अनचाहे नवजातों की संख्या को वैध गर्भपात की समय-सीमा बढ़ाए जाने के बाद कम किया जा सकता है। एक मीडिया रिपोर्ट में इस बाबत डॉक्टरों का हवाला देते हुए कहा गया है कि भ्रूण में किसी भी तरह के विकार का पता लगाने के लिए 20 हफ्ते का समय पर्याप्त नहीं है। ऐसे में इस समय-सीमा को 24 हफ्ते तक बढ़ाए जाने की जरूरत है।
केंद्र सरकार को जवाब देने के लिए 2 महीने का अल्टिमेटम
कोर्ट ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा है कि भारत में 17 लाख बच्चे हर साल डिफेक्ट के साथ पैदा होते हैं। इसे कम किया जा सकता है। कोर्ट ने बताया कि डॉक्टरों का कहना है कि 20 हफ्तों से कम उम्र के भ्रूण में इन असामान्यताओं का इलाज कर पाना संभव नहीं है। हाई कोर्ट की पीठ ने केंद्र सरकार को इस मामले पर उत्तर देने के लिए दो महीने का समय दिया है।

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