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साढ़े तीन साल पहले डॉक्टरों ने किया डिस्चार्ज, पर अब भी प्राइवेट अस्पताल में भर्ती 69 साल की बुजुर्ग

सामाजिक

अस्पताल के अधिकारियों ने बताया कि उनका अस्पताल में इलाज नहीं हो रहा था इसलिए उन्होंने बिलों का भुगतान करना बंद कर दिया। अस्पताल की दूसरी मंजिल पर सामान्य वॉर्ड से जुड़ा एक कमरा है जहां दीपिका भर्ती हैं। हालांकि कोई डॉक्टर उन्हें वहां देखने नहीं जाता
मुंबई
मुंबई के बॉम्बे हॉस्पिटल में एक ऐसी महिला मरीज भर्ती हैं जिन्हें लगभग साढ़े तीन साल पहले डिस्चार्ज कर दिया गया था। दीपिका पंजाबी नाम की इन 69 साल की महिला ने फिट होने के साढ़े तीन साल के बाद भी अस्पताल का बेड खाली नहीं किया। आपको जानकर हैरानी होगी कि यह अस्पताल कोई सरकारी नहीं बल्कि एक प्राइवेट अस्पताल है। दीपिका यहां जुलाई 2015 से रह रही हैं। तमाम प्रयास के बाद भी जब उन्होंने अस्पताल का बेड खाली नहीं किया और उनके घरवालों का पता नहीं चला तो अब अस्पताल प्रशासन ने पुलिस की मदद मांगी है

इस तरह के केस सामान्यता किसी सरकारी अस्पताल में देखने को मिल जाते हैं। बुजुर्ग रोगियों के परिवारों द्वारा त्याग दिए जाने के बाद और उन्हें न ले जाने के बाद वह सरकारी अस्पतालों के बेड पर पड़े रहे हैं। लेकिन प्राइवेट अस्पताल से संबंधित इस तरह का मामला शायद ही पहली बार सामने आया है। दीपिका को जुलाई 2015 में मरीन लाइन्स के अस्पताल में एक स्पाइनल कम्प्रेशन के लिए इलाज करवाने के लिए भर्ती कराया गया था। उनका इलाज किया गया और फरवरी 2016 में उन्हें पूरी तरह से फिट होने का प्रमाणपत्र देते हुए अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। उसके परिवार में से कोई भी व्यक्ति अस्पताल नहीं आया। दीपिका खुद भी अस्पताल छोड़ने के लिए राजी नहीं हुईं।
परिवार से कोई नहीं आता देखने
अस्पताल के अधिकारियों ने बताया कि उनका अस्पताल में इलाज नहीं हो रहा था इसलिए उन्होंने बिलों का भुगतान करना बंद कर दिया। अस्पताल की दूसरी मंजिल पर सामान्य वॉर्ड से जुड़ा एक कमरा है जहां दीपिका भर्ती हैं। हालांकि कोई डॉक्टर उन्हें वहां देखने नहीं जाता। अस्पताल की आया नियमित रूप से उनके डायपर बदलती हैं, कभी-कभी उन्हें खाना खिलाते हैं और उसके कमरे को साफ करते हैं। दिलचस्प बात यह है कि उनके परिवार का कोई भी सदस्य उन्हें देखने नहीं आता। कई बार कर्मचारी उनके घर गए तो भी उन्होंने कोई अच्छा रेस्पॉन्स नहीं दिया। परिवार दीपिका के खाने और उनकी जरूरत के सामान के लिए एक स्थानीय केमिस्ट को भुगतान करता है।

मोबाइल से ऑर्डर करके मंगवाती हैं खाना
जब दीपिका से मिलकर उनसे पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि वह चेंबूर की निवासी है और उनकी एक बड़ी बहन हैं। जब आगे पूछा गया तो वह रोने लगीं। केमिस्ट जगदीश चौधरी ने बताया कि दीपिका के भाई-बहन सहित एक परिवार है। लेकिन यह स्पष्ट है कि वे उसे घर नहीं ले जाना चाहते। वे उसकी सभी जरूरतों के लिए भुगतान करते हैं और हम मानवता के नाते उनकी मदद करते हैं। वह अस्पताल छोड़ना नहीं चाहतीं लेकिन वह अस्पताल का खाना भी पसंद नहीं करती हैं। उनके पास एक मोबाइल है। वह उनसे ही मोबाइल रिचार्ज करवाती हैं। दीपिका पास के शाकाहारी रेस्तरां से खाना ऑर्डर करती हैं।
‘जानबूझकर नहीं चलती हैं’
कर्मचारियों ने बताया कि दीपिका इस मोबाइल के जरिए उन लोगों के लिए मुसीबत भी खड़ी करती हैं। वह पुलिस को फोन करके उन लोगों की शिकायत करती हैं। उनका इलाज करने वाले आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. एमएल सराफ ने कहा कि दीपिका को किशोरावस्था के दौरान ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या हो गई थी। उसके सभी चार लिंब्स अब अच्छी तरह से काम कर रहे हैं। वह चाहें तो चल सकती हैं लेकिन वह नहीं चलती हैं। बातचीत के दौरान उन्हें पता चला कि इलाज के भुगतान को अदा करने के लिए उनके घरवालों ने उनका फ्लैट बेच दिया अब उनके पास रहने का कोई ठिकाना नहीं है।

डॉक्टर ने बताया कि दीपिका का परिवार सहयोग नहीं कर रहा है और पुलिस ने मदद करने से इनकार कर दिया है। उन्होंने कहा कि राज्य को परिवार द्वारा छोड़े गए ऐसे बुजुर्गों के लिए एक सहायता प्रणाली बनाना चाहिए।(साभार नवभारत टाईम्स)

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