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राजनीति में छाए हैं रजवाड़े, चल रहा लोकतंत्र में राजाओं का सिक्का

Politics

लोकतंत्र के साथ राजतंत्र की विदाई हुई तो राजाओं ने रहनुमाई का नया रास्ता पकड़ लिया। देश और प्रदेश की सियासत में कई रियासतें न केवल सक्रिय हैं, बल्कि कुछ प्रदेशों में आज भी उनका सिक्का चलता है। यूपी के मांडा के राजपरिवार से निकले विश्वनाथ प्रताप सिंह देश के पीएम बने तक थे और मंडल कमीशन लागू करके सियासत और ‘समाजशास्त्र’ में भी बड़े बदलाव की जमीन तैयार की थी। अलग-अलग हिस्सों में छोटे बड़े सौ से अधिक राजघराने राजनीति के जरिए माननीय बनने की जुगत में लगे हैं। सियासत में ‘राज’ कर रहे है ऐसे कुछ प्रमुख राजघरानों के बारे में बता रहे हैं प्रेमशंकर मिश्र:
बुशहर रियासत (हिमाचल प्रदेश)
इस राजघराने के वीरभद्र सिंह का सिक्का यहां की सियासत में खूब चला है। 1962 में कांग्रेस से लोकसभा चुनाव में जीत के साथ सियासी पारी शुरू करने वाले वीरभद्र पांच बाद सांसद रहे। केंद्र में इस्पात मंत्री की जिम्मेदारी संभाली। हिमाचल प्रदेश के पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इस दौरान उनकी 2004 में उनकी पत्नी भी सांसद रहीं। इस समय वीरभद्र सिंह हिमाचल की अर्की सीट से विधायक हैं। विधानसभा चुनाव में अपने बेटे विक्रमादित्य सिंह को शिमला ग्रामीण की सीट से विधायक बना सियासी उत्तराधिकार सौंपने की जमीन तैयार कर दी है।
सरगुजा रियासत (छत्तीसगढ़)
छत्तीसगढ़ की सियासत में यह सबसे सक्रिय राजघराना है। इस घराने के चंडीकेश्वर सिंह देव 1952 में विधायक बने थे। उनकी पत्नी महारानी देवेंद्र कुमारी भी कांग्रेस से विधायक और मंत्री रहीं। फिलहाल यहां के टीएस सिंह देव प्रदेश में कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में है। रमन सरकार के दौरान नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने वाले टीएस देव इस समय प्रदेश की कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं।
जशपुर राजघराना (छत्तीसगढ़)
यहां के राजा विजय भूषण सिंह देव 1952 और 1957 में विधायक रहे और 1962 में रायगढ़ से सांसद बने। राजघराना सर्वाधिक चर्चा में रहा धर्मांतरण के खिलाफ अभियान चलाने वाले दिलीप सिंह जूदेव के चलते। दो बार लोकसभा व एक बार राज्यसभा पहुंचे दिलीप अटल सरकार में मंत्री भी बने लेकिन रिश्वत कांड में नाम आने के चलते इस्तीफा देना पड़ा। इनके बेटे रणविजय सिंह जूदेव बीजेपी से राज्यसभा सांसद हैं। भतीजे युद्धवीर सिंह जूदेव दो बार विधायक रहे और 2018 के विधानसभा चुनाव में उनकी पत्नी संयोगिता सिंह को चंद्रपुर सीट से बीजेपी ने उतारा लेकिन वे हार गईं।
ग्वालियर रियासत (मध्य प्रदेश)
सिंधिया राजघराने की राजनीतिक एंट्री हुई 1957 में
महारानी विजय राजे सिंधिया के कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने से। बाद में वे जनसंघ और बीजेपी का हिस्सा बनीं व रामजन्म भूमि आंदोलन की रूपरेखा में अहम भूमिका निभाई। उनके बेटे माधवराव सिंधिया कांग्रेस संग सियासत में रहे और 9 बार सांसद बने और केंद्र में मंत्री रहे। उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के वेस्ट यूपी के प्रभारी और एमपी में गुना से सांसद हैं।
राघोगढ़ (मध्य प्रदेश)
यहां के राजा बलभद्र सिंह ने 1951 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विधानसभा लड़े और जीते। उनके बेटे दिग्विजय सिंह दो बार एमपी के सीएम रहे हैं और राष्ट्रीय राजनीति में भी कांग्रेस के लिए अहम भूमिका निभा चुके हैं। इस समय राज्यसभा सांसद दिग्विजिय सिंह भोपाल से कांग्रेस के लोकसभा में उम्मीदवार हैं। उनके बेटे जयवर्धन सिंह राघोगढ़ से विधायक और कमलनाथ सरकार में मंत्री हैं।
जोधपुर रियासत (राजस्थान)
रॉयल फैमिली के महाराजा हनवंत सिंह 1952 में अपनी पार्टी बना चुनाव में उतरे लेकिन प्रचार के दौरान ही प्लेन क्रैश में उनकी मौत हो गई। उनके बेटे गज सिंह 1990 में राज्यसभा सांसद बने। गज सिंह की बड़ी बहन चंद्रेश कुमारी कटोच कांग्रेस से 1984 में हिमाचल प्रदेश की कांगड़ा सीट से सांसद बनीं। 2009 में वह जोधपुर से सांसद बनीं, लेकिन 2014 में मोदी लहर में अपनी सीट नहीं बचा पाईं।
जयपुर रियासत (राजस्थान)
यहां की महारानी गायत्री देवी ने सी. राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी से सियासत शुरू की थी। 1962 में जयपुर से उन्होंने ऐतिहासिक मतों से चुनाव जीता। 1967 और 1971 में इंदिरा लहर में कांग्रेस का ऑफर ठुकरा उसके खिलाफ लड़कर जीतीं। इमरजेंसी के दौरान उन्हें पांच महीने जेल भी रहना पड़ा। उनके सौतेले बेटे भवानी सिंह कांग्रेस से 1989 में लोसकभा चुनाव लड़े लेकिन हार गए। भवानी की बेटी राजकुमारी दिया कुमारी ने 2013 में बीजेपी से सियासत शुरू की और विधायक बनीं। पिछला विधानसभा चुनाव उन्होंने नहीं लड़ा। इस बार राजसमंद लोकसभा से टिकट के दावेदारों में हैं।
धौलपुर राजघराना (राजस्थान)
सिंधिया घराने की महारानी विजयराजे संधिया की बेटी वसुंधरा राजे का विवाह धौलपुर रियासत की महाराजा राणा हेमंत सिंह से हुआ लेकिन बाद में वह अलग हो गईं। 1984 में वे बीजेपी का हिस्सा बनीं। दो बार राजस्थान की सीएम रहीं वसुंधरा इस समय बीजेपी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। वसंधुरा के बेट दुष्यंत सिंह झालावाड़ से सांसद हैं और 2019 में फिर बीजेपी के उम्मीदवार। वसुंधरा की बहन यशोधरा राजे सिंधिया भी बीजेपी में हैं।
कश्मीर डोगरा घराना (जम्मू-कश्मीर)
राजा हरि सिंह के पुत्र कर्ण सिंह ने 1967 में जम्मू-कश्मीर के गवर्नर का पद छोड़कर सियासत में हाथ आजमाया। 1967 में केंद्रीय कैबिनेट के वह सबसे युवा मंत्री बने। इसके बाद 1971 में भी केंद्रीय मंत्री रहे। 1984 तक सांसद रहे कर्ण सिंह 84 में चुनाव हार गए। 1996 में नैशनल कॉन्फ्रेंस ने उन्हें राज्यसभा भेजा। इसके बाद वर्ष 2000 से 2018 तक कर्ण सिंह कांग्रेस के कोटे से राज्यसभा सांसद रहे। उनका नाम राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारी के तौर पर भी उछला था
अमेठी राजघराना (यूपी)
कांग्रेस के गढ़ अमेठी में रियासत से सियासत में राजा संजय सिंह 1980 में उतरे। दो बार विधायक बनने के बाद 1989 तक यूपी की कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे। 1990 में उन्हें राज्यसभा भेजा गया। 1998 में राजा ने निष्ठा बदली और अमेठी से ही बीजेपी के टिकट पर सांसद बने। 2003 में कांग्रेस में लौटे और 2009 में सुल्तानपुर से सांसद बने। इस समय आसाम से राज्यसभा सांसद के साथ ही सुल्तानपुर लोकसभा से वरुण गांधी के खिलाफ कांग्रेस से ताल ठोंक रहे हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में अमेठी सीट से संजय सिंह ने अपनी दूसरी पत्नी अमीता सिंह को कांग्रेस से चुनाव लड़ाया लेकिन अपनी पहली पत्नी और भाजपा उम्मीदवार गरिमा सिंह के हाथों हारने से नहीं बचा सके।
रामपुर रियासत (यूपी)
हरियाणा की लोहारू रिसायत के नवाब अमीनुद्दीन अहमद खान की बेटी नूरबानो ने रामपुर रियासत से सियासत में 1992 में कदम रखा। 1996 और 1999 में वे कांग्रेस से सांसद रहीं। 2014 में वे मुरादाबाद से कांग्रेस से लोकसभा लड़ी थीं लेकिन जीत नहीं मिली। उनके बेटे काजिम अली खां चार बार विधायक रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
प्रतापगढ़ राजघराना(यूपी)
यहां के अलग-अलग घराने में राजनीति में अब भी प्रभावी हैं। कालाकांकर राजघराने के राजा दिनेश सिंह प्रतापगढ़ से चार बार सांसद रहे और इंदिरा सरकार में केंद्रीय मंत्री रहे। उनके निधन के बाद उनकी छोटी बेटी राजकुमारी रत्ना सिंह तीन बार सांसद रहीं। आखिरी बार 2009 में वे प्रतापगढ़ से जीती थीं। प्रतापगढ़ के राजा अजीत प्रताप सिंह 1962 में जनसंघ व 1980 में कांग्रेस से सांसद बने। उनके बेटे अभय प्रताप सिंह 1971 में जनता दल से सांसद चुने गए। भदरी राजघराने के रघुराज राज प्रताप सिंह 1993 से अब तक लगातार निर्दल विधायक हैं और इस दौरान तीन बार वे यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं। लोकसभा चुनाव में अपनी पार्टी बनाकर उम्मीदवार उतार रहे हैं।

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