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मनी लॉन्ड्रिंग कानून के दायरे पर आज सुप्रीम कोर्ट सुनाएगा फैसला!

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नई दिल्ली: देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट आज एक बेहद अहम फैसला सुनाने वाली है। निर्णय इसलिए भी अहम होगा क्योंकि यह आजकल बेहद चर्चा में चल रहे प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की शक्तियों, गिरफ्तारी के अधिकार, गवाहों को समन भिजवाने और संपत्ति जब्त करने के तरीके को चुनौती देने वाली याचिका पर लिया जाएगा। कांग्रेस नेता कार्ति चिदंबरम, एनसीपी नेता अनिल देशमुख एवं अन्य की तरफ से प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (Prevention of Money Laundering Act, 2002) के तहत आए सैकड़ों अपील पर फैसला होगा। न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ सुनवाई करेगी, जो 29 जुलाई यानी अगले कुछ घंटों में रिटायर हो जाएंगे। पीठ के अन्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार और दिनेश माहेश्वरी हैं।

पुलिस के दुरुपयोगा का आरोप
याचिकाकर्ताओं की माने तो जांच एजेंसियां प्रभावी रूप से पुलिस शक्तियों का प्रयोग करती हैं, इसलिए उन्हें जांच करते समय सीआरपीसी का पालन करने के लिए बाध्य होना चाहिए। इस मामले में कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी जैसे कई वरिष्ठ वकीलों ने अपना पक्ष रखा है। सख्त जमानत की शर्त, गिरफ्तारी के मामले में गैर-रिपोर्ट, बिना ईसीआईआर के गिरफ्तारी, इस कानून के कई पहलुओं की आलोचना की जा रही है। चूंकि ईडी एक पुलिस एजेंसी नहीं है, इसलिए जांच के दौरान आरोपी द्वारा ईडी को दिए गए बयानों का इस्तेमाल आरोपी के खिलाफ न्यायिक कार्यवाही में किया जा सकता है, जो आरोपी के कानूनी अधिकारों के खिलाफ है।

भारत में 1990 से चलन में मनी लॉन्ड्रिंग शब्द
भारत में मनी लॉन्ड्रिंग कानून, 2002 में अधिनियमित किया गया था, लेकिन इसमें 3 बार संशोधन (2005, 2009 और 2012) किया जा चुका है। 2012 के आखिरी संशोधन को जनवरी 3, 2013 को राष्ट्रपति की अनुमति मिली थी और यह कानून 15 फरवरी से ही लागू हो गया था। पीएमएलए (संशोधन) अधिनियम, 2012 ने अपराधों की सूची में धन को छुपाना (concealment), अधिग्रहण (acquisition) कब्ज़ा (possession) और धन का क्रिमिनल कामों में उपयोग (use of proceeds of crime) इत्यादि को शामिल किया है।(साभार एन बी टी)

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