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न तन पे कपड़े, न शर्मिंदगी…

Life-Style

नई दिल्‍ली: देश में बिना कपड़ों के सार्वजनिक जगहों पर घूमने-फिरने पर रोक है। हालांकि, एक ऐसा भी कुनबा है जो इसे लाइफस्‍टाइल के हिस्‍से के तौर पर देखता है। इस कुनबे के लोगों को उनमुक्‍त जीना पंसद है। प्रकृति के साथ। पशु-पक्षियों की तरह। तन पर कपड़ों के बिना। खुले मन से। यह कुनबा बढ़ रहा है। अपने को यह ‘नैचुरलिस्‍ट’ (Naturalist) कहता है। इस अनूठी जीवनशैली को नेचरिज्‍म (Naturism)। ऐसी लाइफस्‍टाइल में कपड़े नहीं, बिना कपड़ों के लोग रहते हैं। इस लाइफस्‍टाइल को जीने के लिए एक खास सेटअप की जरूरत पड़ती है। इसे अपनाने वालों की सोच पर सवाल उठाना आसान है। लेकिन, यह समझने की जरूरत है कि आखिर इस तरह से जीना इन लोगों को क्‍यों पसंद है।

इसी तरह की लाइफस्‍टाइल में रहने वाली एक 26 साल की लड़की ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्‍स ऑफ इंडिया (TOI) के साथ बातचीत में बताया कि उनके साथ कुछ लोगों का ग्रुप है। वे सभी महीने में एक बार या हफ्ते में अक्‍सर जुटते हैं। अपनी पहचान को वे छुपाकर रखते हैं। उनकी मुलाकात जंगलों या नदियों के किनारे किसी के घर या इको-रिजॉर्ट में होती है। बचपन से वह इस तरह रही हैं। साथ के न्‍यूडिस्‍ट के साथ उनके बड़े होने का अनुभव बिलकुल अलग रहा है। वह जैसे-जैसे बड़ी हुईं मास्‍क की तरह कपड़े उतरते गए। कपड़ों को वह हैसियत बताने वाली चीज की तरह देखती हैं। उनका मानना है कि इससे गरीब और अमीर का फर्क दिखता है। कपड़ों को त्‍यागकर वह ज्‍यादा आजाद महसूस करती हैं। उन्‍हें अपने शरीर की कम फिक्र रह जाती है।

हजारों की है संख्‍या, हर कोने में फैले
देश में बिन कपड़ों के इस तरह जीने की चाह रखने वाले न्‍यूड‍िस्‍ट हजारों की संख्‍या में हैं। हालांकि, यह कल्‍चर पूरी तरह से अंडरग्राउंड है। बरेली, मुंबई, जलगांव से लेकर जयपुर, कानपुर और कोलकाता तक यह कुनबा फैला है। इस तरह की लाइफस्टाइल को अक्‍सर गलत तरह से समझा जाता है।

नाम न छापने की शर्त पर एक शख्‍स ने बताया कि ज्‍यादातर लोग न्‍यूडिटी को सेक्‍स के साथ लिंक करते हैं। न्‍यूड रहने की चाह रखने वाले समुदाय का इससे कोई लेनादेना नहीं है। उन्‍होंने इस लाइफस्‍टाइल को अपनाने का अनुभव शेयर किया। एक किस्‍सा सुनाते हुए उन्‍होंने बताया कि वह बिना किसी फिक्र के जेंडर-न्‍यूट्रल वॉशरूम में चले गए थे। यहां उन्‍होंने कई विदेशी महिलाओं को बिना कपड़ों के बैठे और बातचीत करते हुए पाया। झेपकर वह बाहर आ गए। उनके सुपरवाइजर ने इसी दौरान उन्‍हें पहला सबक दिया। सुपरवाइजर ने बताया कि मानव शरीर शर्मसार होने के लिए नहीं है। यह सब कुछ सिर्फ दिमाग में है। इसके बाद उन्‍होंने इसका अभ्‍यास शुरू किया। इस दिशा में उनका पहला कदम बिना कपड़ों के सोना था। ज्‍यादातर न्‍यूडिस्‍ट यहीं से शुरुआत करते हैं।

वह बताते हैं कि उन्‍हें धीरे-धीरे एक बात महसूस होने लगी। उन्‍हें पता चला कि इस तरह की लाइफस्‍टाइल की चाहत रखने वालों में वह अकेले नहीं हैं। उनका संपर्क उन्‍हीं जैसे लोगों से होने लगा। ऑनलाइन नेटवर्क इसका बड़ा जरिया बना।

नियमों के साथ चलते हैं ग्रुप्‍स
बेंगलुरु में 33 साल की एक गृहिणी व्‍हाट्सएप और टेलीग्राम पर पांच न्‍यूडिस्‍ट ग्रुप चलाती हैं। ऐसा करते हुए वह बहुत सतर्क रहती हैं। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती इस ग्रुप से यौन संबंध बनाने की इच्‍छा रखने वालों को हटाने की होती है। इसके लिए वह कई तरह के उपाय करती हैं। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना होता है कि मेंबर बिना कपड़ों के एक साथ सुरक्षित महसूस कर सकें। उन्‍होंने न्‍यूडिस्‍ट एटिकेट गाइड भी बनाई है। सभी मेंबरों को मिलने पर इसका सख्‍ती से पालन करने की जरूरत होती है। बालकनी में साथ तौलिया लेकर जाना, मिलने की जगह पर इलेक्‍ट्रॉनिक डिवाइस न लाना, फिजिकल कॉन्‍टैक्‍ट से मनाही इत्‍यादि इनमें शामिल हैं।

दिलचस्‍प यह है कि दुनिया का पहला न्‍यूडिस्‍ट क्‍लब ठाणे में शुरू हुआ था। तब भारत पर ब्रितानियों की हुकूमत थी। इसकी नींव 1891 में रखी गई थी। तत्‍कालीन जिला व सत्र न्‍यायाधीश चार्ल्‍स एडवर्ड गॉर्डन क्रॉफोर्ड ने इसके लिए ‘फेलोशिप ऑफ द नेकेड ट्रस्‍ट’ बनाया था। शुरुआत में इसके सिर्फ तीन मेंबर थे। इनमें क्रॉफोर्ड और उनके दो बेटे शामिल थे। हालांकि, 1894 में संस्‍थापक की मौत के बाद यह क्‍लब बंद हो गया था।

अभी देश में ऐसी सबसे ज्‍यादा आबादी कोलकाता में है। महानगर में नेकेड मीटअप्‍स सबसे ज्‍यादा होते हैं। ग्रुप के लोग करीब-करीब हर हफ्ते मिलते हैं। इसके बाद बेंगलुरु, मुंबई, असम और केरल का नंबर है। इन शहरों में न्‍यूडिस्‍ट की मुलाकात करीब हर महीने होती है।(साभार एन बी टी)

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