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‘नागराज’ का गांव … साँप से डसवाते और खेलते हैं

सांस्कृतिक

जमशेदपुर:
नागों का नाम आते ही आपके मन में डर समा जाता है।लेकिन जमशेदपुर से 80 किलोमीटर दूर पूर्वी सिहभूम जिला के घालभूमगढ प्रखंड के NH-33 के किनारे बसे मोहाली शोल गांव में मां मनसा पूजा के दिन नागों की अलग-अलग प्रजाति की पूजा होती है। यही नहीं ओझा गुणी जहरीले नागों के साथ खेलते भी हैं। इस दौरान नाग उन्हें डसते नहीं बल्कि इस खेल में शामिल होते हैं। हालांकि इस बार कोरोना वायरस के चलते गाइडलाइन की वजह से काफी कम नागों की पूजा की गई। ये पूजा सावन की अंतिम सोमवारी के दूसरे दिन मां मानसा के लिए की जाती है।

तीन दिनों तक चलती है नागराज की पूजा
तीन दिनों तक चलने वाले मां मानसा पूजा के लिए गांव वाले और खास कर मन्नत रखने वाले बेसब्री से इंतजार करते है। इस पूजा वाले दिन जिन-जिन को पूजा करनी होती है, उन्हें उपवास रखना पड़ता है। गांव के मुख्य मंदिर में पूजा का आयोजन होता है। यहां पर मां मानसा की मूर्ति ले आई जाती है। फिर शाम के चार बजे के बाद उपवास किए हुए गांव के ग्रामीण घट लेकर जल भरने तालाब की ओर जाते हैं और वहां से जलभर कर वापस आते हैं। लौटने के बाद उसी जल से पूजा की जाती है जो रात ग्यारह बजे तक चलती है।

ओझा-गुणी के लिए अहम दिन
ओझा गुणी के लिए यह पूजा काफी महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस बहाने वह लोगों को बताना चाहते हैं कि वे नाग के डसने का इलाज करते हैं । मां मानसा की पूजा शाम को होती है। उससे पहले इस पूजा को करने वाले मुख्य पंडित अपने घर के आंगन मेंं तुलसी के पौधे के सामने नागों को रखते हैं।
इसके बाद वो पूरे विधि विधान से और उसके बाद पुरी विधी विधान के साथ नाग की पूजा की जाती है। पूजा के बाद नागों को एक टोकरी में बंद कर रख दिया जाता है। जब पूजा के लिए घट लेकर ग्रामीण तालाब की ओर जाते हैं, उस वक्त इनके आगे आगे ओझा गुणी भी चलते हैं। उस दौरान वे जिस नाग की पूजा करते हैं उसे अपने गले में लटका लेते हैं।

नाग से डसवाते और खेलते हैं ओझा
ओझा-गुणी इस दौरान न सिर्फ उस नाग से खेलते हैं बल्कि खुद को डसवाते भी हैं। हालांकि हम ऐसा करने की सलाह आपको बिल्कुल भी नहीं देंगे क्योंकि ओझा-गुणी इस दौरान सांप के जहर का इलाज खुद कर लेते हैं। जब घट में पानी लेकर ग्रामीण वापस आ जाते हैं तो फिर उस नाग को जंगल में छोड़ दिया जाता है। इस खेल को देखने के लिए दूसरे गांव से भी ग्रामीण यहां आते हैं। यही नहीं इस दिन गांव में मेला भी लगाया जाता है।

जानिए नाग से पुजारियों के डसवाने की वजह
इस सबंध मे ग्रामीण खिरोद उस्ताद ने बताया कि यह मां मानसा की परंपगत पूजा है, जिसका आयोजन सदियों से होता चला आ रहा है। माना जाता है कि मां मनसा विषहरणी यानि विष को हरने वाली है। मां मनसा की सवारी नाग को माना जाता है। ग्रामीण के मुताबिक ‘इसके बाद हमलोग नाग के डसे किसी भी व्यक्ति को ठीक कर सकते हैं।’

कोविड के कारण छोटे स्तर पर हो रही पूजा
कोविड के कारण सरकार ने पूजा को लेकर गाइडलाइन जारी किया है, उसे देखते हुए पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी छोटे स्तर पर मां मनसा की पूजा की जा रही है। इस कारण नागों को कम लाया गया है।सबसे खास बात यह है कि इस गांव नागों को मारा नहीं जाता है। यही नहीं, अगर नाग दिख जाए तो उसे पकड़ कर वापस जंगल की ओर छोड़ दिया जाता है।(साभार एन बी टी)

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