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जिसे वेटर की नौकरी के लायक भी नहीं समझा गया, उसने खड़ा कर दिया होटलों का साम्राज्य

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सेजार रित्ज को होटल उद्योग के लिए अयोग्य करार दिया गया था, आज उनके समूह के पास 30 देशों में 100 से ज्यादा होटल, 27,650 से ज्यादा कमरे हैं

नई दिल्ली
यह कोई नई बात नहीं कि अगर गरीबी पीछे लग जाए, तो दूर और देर तक पीछा करती है। निगोड़ी गरीबी भी ऐसी कि अकेली नहीं रहती, अपने साथ कमियों का गुच्छा लिए फिरती है। अक्षमता और अकुशलता जैसी बड़ी कमियां अक्सर गरीबी में ही आटा गीला करती हैं। उस गरीब वेटर की उम्र ही क्या थी, महज 15 साल। ब्रिग शहर के एक ठीक-ठाक होटल में वेटर था। देहात से आए उस लड़के से गलतियां ऐसे होती थीं, जैसे किशोर वय में नजरें भटक जाती हैं। कमियां उतनी ही छूट जाती थीं, जितनी बार ध्यान भटक जाता था और लगभग उतनी ही बार फटकार भी नसीब होती थी। समझाने वाले भी कम नहीं थे, लेकिन समझ की खिड़की थी कि खुलने का नाम नहीं ले रही थी।

तुम किसी होटल के लिए बने ही नहीं हो

फिर एक दिन वह भी आया, जब एक ग्राहक का ऑर्डर पूरा करने में बड़ी कमी रह गई और होटल के मालिक आग बबूला हो गए। उस लड़के को सामने खड़ा करके कहा, ‘बेवकूफ, निकल जाओ यहां से। तुम्हें नौकरी से अभी निकाला जाता है। एक के बाद एक गलतियां, बहुत हुआ। तुम्हें बहुत समझाया गया, लेकिन तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता। तुम इस होटल क्या, किसी होटल के लिए बने ही नहीं हो। इस क्षेत्र के लिए तुम एकदम नाकारा हो, यहां तुम्हारा गुजारा नहीं हो सकता। यह क्षेत्र एक अलग ही भाव और लगाव की मांग करता है, लेकिन तुम्हें यह बात क्या खाक समझ आएगी? दफा हो जाओ, फिर अपना मुंह मत दिखाना।’

दुत्कार से सदमे में आ गया लड़का

फटकार तो पहले भी मिली थी, लेकिन ऐसी तगड़ी दुत्कार से वह लड़का सदमे में आ गया। उसने गुहार की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहा। शिक्षा ऐसी नहीं थी कि तत्काल दूसरी नौकरी मिल जाती। चर्च से कुछ पढ़कर निकला था, तो वहीं सेवा करने पहुंच गया। काबिलियत और समझदारी पर ऐसा सवाल उठ गया था कि हर पल कचोटता था। उस होटल मालिक की दुत्कार यादों में बार-बार उमड़ आती थी।

होटल उद्योग के लिए खुद को साबित करने की ठानी

गरीब किसान परिवार से वह निकला था, अपने पिता की सबसे छोटी और 13वीं संतान। गांव व खेती में लौटने की गुंजाइश न थी। धीरे-धीरे समझने लगा कि सिवाय मेहनत-लगन के जिंदगी की राह नामुमकिन है। उसने अपनी एक-एक कमियों पर गौर करना शुरू किया। कब फटकारा गया था, कब सराहना मिली थी। मन ही मन वह ठान बैठा था कि नौकरी ऐसे करो कि कोई छीन न सके। काम-काज के बही-खाते में शिकायतों के दाग न लगें। अब वह खुद को साबित करने का मौका खोजने लगा। मन में यह बात बैठ गई कि जिस होटल उद्योग के लिए उसे नकारा बता दिया गया, उसी में खुद को साबित करना है।

और वेटर से बन गया मैनेजर

वह साल 1867 था, उसे खबर लगी कि पेरिस में एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी लग रही है। दुनिया भर से मेहमान आएंगे, रेस्तरां और होटलों को बड़े पैमाने पर मजदूरों की जरूरत पड़ेगी। 15 साल का वह लड़का अपने गांव-देश स्विट्जरलैंड से दूर खुद को साबित करने नए देश फ्रांस पहुंच गया। पेरिस के एक होटल में सहायक वेटर की नौकरी मिल गई। नई मिली जिंदगी में खुद से किया वादा निभाना था। सेवा ऐसी करो कि अनमोल मुस्कान से जवाब मिले। सामने जो आए, उसे यह एहसास करा दो कि वह बहुत खास है। ग्राहक की एक-एक जायज जरूरत को समय से पहले ही पूरा करने की कोशिश करो। उस लड़के को तरक्की मिलती गई, मैनेजर बन गया। मात्र चार साल में पेरिस में पहचान बन गई। लोग उन्हें सेजार रित्ज (1850-1918) के नाम से जानने लगे।

रईसों से दोस्ती की कीमत नौकरी खोकर चुकानी पड़ी

एक से एक विद्वानों, गुणवानों, रईसों से उनका पाला पड़ा। जो भी संपर्क में आया, सेवा-सत्कार का मुरीद हो गया। सेजार ने अपने मेहमानों के तमाम अच्छे गुणों को अपने व्यवहार में उतार लिया। एकाध बार तो ऐसा भी हुआ कि रईसों से दोस्ती की कीमत नौकरी खोकर चुकानी पड़ी। योग्यता ऐसी थी कि दूसरी नौकरी आसानी से मिल जाती थी। अच्छी सेवा के सिलसिले के साथ ही अच्छे सेवा भावी वेटरों, मैनेजरों, खानसामों की टीम बढ़ती चली गई। रेस्तरां और होटल व्यवसाय में स्वाद की बड़ी भूमिका होती है, तो उस दौर के सबसे अच्छे खानसामे अगस्ते स्कोफेयर को उन्होंने हमेशा के लिए अपना सबसे अच्छा दोस्त बना लिया। फिर चला अपना होटल, रेस्तरां खोलने का अथक कामयाब सिलसिला।

तो ऐसा होता है, खुद को सुधारकर खड़ा करने का जोश, जुनून और जज्बा। हम भूल नहीं सकते, जिन सेजार रित्ज को होटल उद्योग के अयोग्य करार दिया गया था, आज उनके समूह के पास दुनिया के 30 देशों में 100 से ज्यादा होटल और 27,650 से ज्यादा शानदार कमरे हैं। होटलों की दुनिया में उन्हें आज भी कहा जाता है, ‘होटल वालों का राजा और राजाओं का होटल वाला’।(साभार लाइव हिंदुस्तान)

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