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गज़ब:सिर्फ एक मरीज के इस्तेमाल के लिए बनाई गई खास दवा

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सिर्फ एक मरीज के इलाज के लिए खासतौर पर तैयार की गई नई दवा को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या दवाओं को भी पर्सनलाइज्ड रूप देना चाहिए? वैज्ञानिकों ने ऐसा किए जाने को लेकर सवाल उठाए हैं

लंदन

सिर्फ एक मरीज के इलाज के लिए खासतौर पर तैयार की गई नई दवा को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं कि क्या दवाओं को भी पर्सनलाइज्ड रूप देना चाहिए? वैज्ञानिकों ने ऐसा किए जाने को लेकर सवाल उठाए हैं।
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक यह नई दवा जेनेटिक बीमारी के लिए एक कस्टम ट्रीटमेंट के तौर पर ईजाद की गई यानी इसे रोगी और उसकी बीमारी को देखते हुए विशेष रूप से तैयार किया गया। इस दवा का नाम मिलासन (Milasen) है और इसे इसका नाम इसके एकमात्र उपयोगकर्ता यानी पेशंट के नाम पर ही रखा गया है। 8 वर्षीय मिला माकोवेक कोलोराडो में अपनी मां जूलिया वितारेलो के साथ रहती है और एक घातक जेनेटिक बीमारी से जूझ रही है। 3 साल की उम्र से ही मिला में न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर के लक्षण नजर आने लगे थे और तब से यह बीमारी गंभीर रूप से बढ़ रही है।
इस बीमारी से पहले मिला एक स्वस्थ और हेल्दी बच्ची थी लेकिन इस बीमारी ने उसकी देखने की क्षमता भी खत्म कर दी और अपने पैरों पर खड़े होने से भी लाचार बना दिया। इतना ही नहीं वह अपना सिर भी खुद संभाल नहीं पाती थी और उसे खाना-पीना भी फूड पाइप के जरिए ही दिया जा सकता था। जूलिया ने बताया कि उन्हें 2016 दिसंबर में पहली बार यह पता चला कि उनकी बेटी को बैटन डिजीज है।

गौरतलब है कि बैटन डिजीज एक दुर्लभ तरह की नर्व सिस्टम से जुड़ी बीमारी है जिसमें समय के साथ न्यूरोनल सिरॉयड लिपोफसचिनोसिस (NCLs) खराब होता रहता है। इसके शुरुआती लक्षण डिमेंशिया, ब्लाइंडनेस और अपेलेप्सी हैं और यह आमतौर पर 5 से लेकर 10 साल की उम्र में शुरू होता है। इस बीमारी के कई रूप हैं और सभी घातक हैं जिसमें रोगी के बचने के उम्मीद नहीं होती।

डॉक्टर्स के मुताबिक मिला की बीमारी रिसेसिव है और बीमारी के बढ़ने के लिए MFSD8 जीन के 2 म्यूटेड वर्जन होने चाहिए लेकिन मिला में सिर्फ एक ही म्यूटेड जीन है और दूसरा जीन नॉर्मल है। मार्च 2017 में डॉ. टिमोथी यू और उनके सहयोगियों ने बॉस्टन चिल्ड्रेन्स हॉस्पिटल में जांच की कि मौजूदा जीन के साथ समस्या DNA के एक बाहरी हिस्से में है जिससे एक महत्वपूर्ण प्रोटीन के प्रॉडक्शन में रुकावट आ रही है और यही मिला की बीमारी की मुख्य वजह है।
इस जांच के बाद डॉ. यू को यह आइडिया आया कि बाहरी DNA के प्रभाव को रोकने के लिए कस्टम तरीके से RNA बनाया जाए तो बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है। डॉ. यू की टीम में देखरेख में इस दवा का निर्माण हुआ और इसका टेस्ट चूहों पर किया गया। फूड ऐंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन के पास अप्रूवल के लिए दवा को भेजा गया और जनवरी 2018 में एजेंसी ने मिला को दवा देने की मंजूरी दी और 31 जनवरी को मिला को इस दवा की पहली डोज दी गई।
दवा स्पाइनल टैप के जरिए दी जाती है ताकि सीधे ब्रेन तक पहुंच सके। दवा देने के लिए एक महीने के भीतर मिला की हालत में सुधार देखा गया। इस ट्रीटमेंट के बाद मिला को आने वाले दौरे कम हो गए। यहां तक कि मिला को अब ट्यूब के जरिए भी खाना देने की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि उसे लिक्विड फूड या खाने को प्यूरी फॉर्म में दिया जा सकता है। एक बार सहारे से खड़े होने के बाद अब वह अपना सिर स्थिर रख पाती है और उतना हिलती भी नहीं है जिससे बॉडी अनबैलेंस हो जाए।

गौरतलब है कि मिलासन ऐसी पहली दवा है जिसे सिर्फ एक पैशंट के इस्तेमाल के लिए बनाया गया लेकिन डॉ. यू और उनके सहयोगी भी इस बात को मानते हैं कि इस तरह किसी दवा के ईजाद किए जाने और उसके उपयोग को लेकर अभी भविष्य की रास्ता स्पष्ट नहीं है।(साभार नवभारत टाईम्स)

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