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‘RJD के साथ ने हमें कमजोर किया, हम खुद को मजबूत करना ही भूल गए’

Politics

बिहार में दो विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव ने कांग्रेस को उसकी जमीनी हकीकत दिखा दी। आरजेडी से अलग होकर चुनाव लड़ते ही दोनों सीटों पर उसने जमानत तो गंवाई ही, उसे मिले वोटों की तादाद भी (एक सीट पर महज दो प्रतिशत और दूसरी सीट पर 4 प्रतिशत) उसके लिए शर्मिंदगी का सबब बन गई है। आरजेडी से अलग होकर चुनाव लड़ने का ‘आत्मविश्वास’ कहां से आया और बिहार में अपना वजूद बचाए रखने के लिए क्या कांग्रेस को फिर से आरजेडी की ही शरण में जाना पड़ेगा, यह जानने के लिए एडिटर ने बात की कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव तारिक अनवर से। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश :

सवाल: आरजेडी से अलग होकर चुनाव लड़ने का आत्मविश्वास कहां से आया?
जवाब : आत्मविश्वास नहीं था, मजबूरी थी। जिन दो सीटों के लिए उपचुनाव हुए उनमें से एक सीट आरजेडी की ही हुआ करती थी, एक हमारी थी। हम लोगों ने सोचा भी नहीं था कि उपचुनाव के वक्त आरजेडी कह देगी कि हम आपको एक सीट भी नहीं देंगे। कुशेश्वरस्थान विधानसभा सीट पर 2020 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार सिर्फ सात हजार वोट से हारा था। 46 हजार वोट मिले थे हमारे उम्मीदवार को। वह सीट भी हमको नहीं दोगे तो कौन सी सीट दोगे? ठीक है हम बिहार में कमजोर हैं लेकिन राष्ट्रीय पार्टी हैं। आरजेडी ने जब हमसे कहा कि हम आपको कोई सीट नहीं देंगे तो हम क्या करते? दर्शक दीर्घा में बैठ जाते? फैसला हुआ कि हारें तो हारें, पर हम लोग लड़ेंगे।

सवाल: एक साल पहले जिस सीट पर आपको 46 हजार वोट मिले थे, उपचुनाव में महज 5603 मिले। क्या इसका यह मतलब है कि 46 हजार वोट में आरजेडी का शेयर ज्यादा था, जिसे आप लोग अपना समझ रहे थे?
जवाब : 2020 के चुनाव तक हम लोग गठबंधन में थे। जहां हम लोग लड़ रहे थे, वहां आरजेडी का वोट हमें मिला, जहां आरजेडी लड़ रही थी, उसको हमारा वोट मिला। गठबंधन में इस बात का अलग से कोई आकलन नहीं हो सकता कि जो वोट मिले, उसमें कितना-कितना शेयर घटक दलों का है।

सवाल: लेकिन इतना कम वोट मिलना, यह तो साबित करता ही है कि बिहार में आप जमीनी स्तर पर नहीं है…
जवाब : यह सच है कि कांग्रेस की जो परफॉर्मेंस उपचुनाव में रही है, वह हमारे लिए बहुत बड़ा धक्का है। हमने इतने खराब प्रदर्शन की उम्मीद नहीं की थी लेकिन आप चिराग पासवान की पार्टी का प्रदर्शन भी देखिए। उन्हें भी दोनों सीटों पर हमारे जितना वोट मिला है। चुनाव में परसेप्शन का बहुत महत्व होता है। जो धारणा बन जाती है, उससे पार पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। उपचुनाव में यह धारणा बन गई कि लड़ाई जेडीयू और आरजेडी के बीच है, इस वजह से वोटों का ध्रुवीकरण इन्हीं दो पार्टियों के बीच हो गया। दोनों सीटों के रिजल्ट आप देंखे 80 से लेकर 90 प्रतिशत वोट इन्हीं दो पार्टियों के बीच बंट गया।

सवाल: अब आगे का क्या अजेंडा तय किया है आप लोगों ने?
जवाब : हमें अपने संगठन को मजबूत करना होगा। मेरी सलाह तो यह रहेगी कि पार्टी नेतृत्व को अपने मूल कार्यकर्ताओं पर भरोसा करना चाहिए और उन्हें ही आगे बढ़ाना चाहिए। राजनीति में बुरे दिन सभी पार्टियों के आते हैं और वे खत्म भी होते हैं।

सवाल:बिहार में कांग्रेस को सत्ता से बाहर हुए 30 साल से ज्यादा का वक्त हो गया है। हर चुनाव हारने के बाद हमने कांग्रेस नेताओं को यह कहते सुना है कि हम संगठन को मजबूत करेंगे लेकिन कभी ऐसा हुआ नहीं, क्यों?
जवाब : हमारा आरजेडी के साथ गठबंधन हो गया था। 90 के दशक से बिहार में आरजेडी सबसे मजबूत दल के रूप में उभरा। आरजेडी के साथ गठबंधन हो जाने पर कांग्रेस जन को यह इत्मीनान हो गया कि हम तो सबसे मजबूत पार्टी के साथ हैं। हमने अपने को मजबूत करने की कोशिश छोड़ दी, हम अपनी निर्भरता आरजेडी पर बढ़ाते गए। यहीं पर हमसे चूक हुई। अगर हम मजबूत होते तो हमें कोई एक भी सीट न देने की बात नहीं कर पाता।

सवाल: अकेले अपने बल पर खड़े होना, मुख्य लड़ाई में आना, यह बहुत लंबी प्रक्रिया होती है, बिहार में क्या फिर से आरजेडी के साथ गठबंधन में जाने की कोशिश करेंगे?
जवाब : अभी कोई फौरी चुनाव नहीं होने जा रहा है। लोकसभा के चुनाव 2024 में होने हैं। बिहार विधानसभा के चुनाव 2025 में होने हैं। गठबंधन को लेकर कोई फैसला करने के लिए अभी बहुत वक्त बाकी है। आरजेडी ही नहीं किसी के भी साथ अगर हमें गठबंधन करना है तो पहले पार्टी को मजबूत करना ही होगा। किसी की बैसाखी पर हम दूर तक नहीं जा सकते। अगर पार्टी मजबूत होगी तो गठबंधन हमारी शर्तों पर होगा। हम कमजोर हुए तो फिर हमें दूसरों की शर्तें माननी होंगी।

सवाल: पार्टी को मजबूत करने के लिए नेतृत्व क्या कदम उठा सकता है?
जवाब : दोनों तरह की स्थितियों के रिजल्ट हमारे सामने हैं। आरजेडी के साथ लड़ने पर भी और उससे अलग होकर लड़ने पर भी। हम तब कहां थे, अब कहां हैं। संगठन को मजबूत करने के लिए जो भी कदम जरूरी होंगे वे तो उठाए ही जाएंगे। हमारे पास कार्यकर्ता तो हैं लेकिन जमीनी कार्यकर्ता नहीं हैं। इस वजह से जनता के बीच में जो समर्थन मिलना चाहिए, वह हमें नहीं मिल रहा है।(साभार एन बी टी)

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