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1998 हो या 2022, भारत झुकेगा नहीं; तब भी US को लगी थी झाड़

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नई दिल्‍ली: रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध के बहाने पश्चिमी देश अलग ही खेल खेल रहे हैं। अमेरिका हो या यूके या फिर यूरोपियन यूनियन के कुछ देश…. भारत के रूस की मुखालफत न करने पर मुंह बनाए हुए हैं। कभी इशारों में तो कभी सीधे-सीधे चेतावनी दी जा रही है। अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा उप-सलाहकार दलीप सिंह ने कहा है कि चीन ने कभी भारत में अतिक्रमण किया तो रूस उसके बचाव के लिए खड़ा नहीं होगा। राष्‍ट्रपति जो बाइडन भी भारत को लेकर टिप्‍पणी कर चुके हैं। भारत को लेकर पश्चिमी देशों का यह रवैया आज का नहीं। करीब ढाई दशक पहले भारत ने जब परमाणु परीक्षण किया, तब भी पश्चिमी देश खुलकर भारत के खिलाफ हो गए थे।

1998 में एक नौजवान भारतीय डिप्‍लोमेट ने अमेरिकी कांग्रेस को दो-टूक भारत का स्‍टैंड समझा दिया था। आज जब अमेरिका भारत पर फिर दबाव बढ़ा रहा है तो वही अधिकारी अमेरिका में भारत का राजदूत है और माहौल संभाल रहा है। नाम है तरनजीत सिंह संधू। संधू ने 1998 में जो किया, वह डिप्‍लोमेसी में एक मिसाल माना जाता है। उनके सीनियर और अब भारत के विदेश मंत्री, एस जयशंकर भी कुछ अलग नहीं। हाल के दिनों में उन्‍होंने सीधे-सपाट लहजे में भारत का पक्ष रखा है। गुरुवार को यूके की विदेश मंत्री के सामने बैठे-बैठे जयशंकर ने भारत विरोधी अभियान चलाने वालों को लताड़ दिया।

इतना भागे थे संधू कि जूते घिस गए
भारतीय डिप्‍लोमेसी के इतिहास में 1998 की गर्मूी सबसे चुनौतीपूर्ण दौर में से गिनी जाती है। परमाणु परीक्षणों के चलते दुनियाभर में भारत को अलग-थलग किया जा रहा था। अमेरिका और उसके सहयोगी देश भारत के पीछे पड़े थे। आज भी कुछ वैसे ही हालात हैं। तब और अब के वक्‍त में कुछ बातें कॉमन हैं- भारत, अमेरिका और तरनजीत सिंह संधू। 1998 में इंडियन फॉरेन सर्विस (IFS) के नए-नए सदस्‍य बने संधू तब वाशिंगटन की एम्‍बेसी में काउंसलर थे। उस वक्‍त नरेश चंद्रा अमेरिका में भारतीय राजदूत थे। बिल क्लिंटन प्रशासन ने भारत पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए थे। फिर भी संधू ने हार नहीं मानी और चंद्रा को इस बात के लिए मनाया कि अमेरिकी कांग्रेस से बात करें। चंद्रा ने सलाह मान ली और संधू के साथ मिलकर कई कांग्रेस सदस्‍यों और सीनेटर्स से मिले।

संधू अमेरिकी कांग्रेस के हॉल में इतना चले कि उनके जूते घिस गए। परमाणु परीक्षण करने की भारतीय मजबूरी आखिरकार अमेरिका को समझ आ गई। नरेश चंद्रा कहा करते थे कि 1998 के न्‍यूक्लियर टेस्‍ट्स में उनके बैली जूतों की कुर्बानी हो गई। चंद्रा ने तो यहां तक कहा था कि हमें ‘शू अलाउंस’ मिलना चाहिए और संधू के लिए यह अलाउंस दोगुना होना चाहिए।

जयशंकर का ‘नो नॉनसेंस’ एटिट्यूड हिट है!
संधू तो अमेरिका में भारत के खिलाफ माहौत शांत करने में लगे हैं मगर विदेश मंत्री एस जयशंकर फ्रंटफुट पर बैटिंग कर रहे हैं। पिछले एक महीने में कई ऐसे मौके आए जब जयशंकर ने भारत का स्‍टैंड साफ किया और उसको जस्टिफाई भी किया। जयशंकर ने कहा कि रूस से तेल खरीदने के चलते भारत के खिलाफ अभियान चल रहा है। उन्‍होंने कहा कि यूरोप अब भी रूसी तेल का प्रमुख खरीदार है और कीमतें बढ़ने पर देशों का ‘अच्‍छे सौदे’ ढूंढना स्‍वाभाविक है।

जयशंकर ने यह बात UK की विदेश मंत्री लिज ट्रूस की मौजूदगी में कही। वह जयशंकर की बात से सहमत नजर आईं। उन्‍होंने कहा, ‘भारत एक संप्रभु देश है और मैं भारत को नहीं बताऊंगी कि उसे क्‍या करना है।'(साभार एन बी टी)

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