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रूस-यूक्रेन जंग में औरतों के जिस्म पर भी चल रहा है एक युद्ध

सामाजिक

नई दिल्ली

जब भी और जहां कहीं भी युद्ध लड़े जाते हैं, तो एक साथ दो युद्ध लड़े जाते हैं। इनमें से एक किसी देश के साथ तो दूसरा औरतों के साथ लड़ा जाता है। यूक्रेन युद्ध में पता चल रहा है कि वहां भी यह दूसरा युद्ध शुरू हो चुका है। कहीं रूसी सैनिक यूक्रेनी महिलाओं से छेड़छाड़ कर रहे हैं, तो कहीं उन्हें सेक्स ट्रैफिकिंग में डालने वाले अपराधी घात लगाकर बैठे हैं।

यूक्रेन के कई शहरों पर रूस का कब्जा हो चुका है। सेना वहां सड़कों पर है। इसी बीच वहां से एक वीडियो आया, जिसमें सिसकियां भरती एक लड़की मदद मांग रही है। यह वीडियो किसी अनहोनी की तरफ इशारा कर रहा है। रूसी हमले के बाद ऐसी अनगिनत तस्वीरें आई हैं, जिनमें लाखों औरतें इस सर्द मौसम में सुरक्षित आशियाने की तलाश में सड़कों पर भाग रही हैं। पोलैंड पुलिस और पोलैंड सीमा पर राहत कार्य में लगे लोगों ने कई ऐसे बदमाशों की पहचान की है, जो इन औरतों को जिस्म के धंधे में धकेलना चाहते हैं। इन्हें शक है कि सुरक्षित ठिकाने के लालच में ये बदमाश कई लड़कियों को बहला भी ले गए हैं।

इसी बीच यूक्रेन से एक खबर यह भी आई कि इन्हीं में से कई औरतों ने रूसी सैनिकों पर यौन शोषण के आरोप लगाए हैं। जब रूसी सैनिक महिलाओं से बदसलूकी कर रहे थे, तो एक महिला उनसे भिड़ भी गई। मानवता पर आए इस संकट के समय डेनमार्क के एक भारतीय मूल के युवा रौनक रावल ने यूक्रेन-पोलैंड बॉर्डर से 40 परेशान महिलाओं को रेस्क्यू किया और फिलहाल अपने घर में पनाह दी है। वहीं, चीनी सोशल मीडिया पर तो यूक्रेन की औरतों के ऑनलाइन यौन उत्पीड़न की जैसे बाढ़ ही आ गई है। हालांकि इस युद्ध में चीन सरकार काफी हद तक तटस्थ भूमिका में ही है। कहा जा रहा है कि सोशल मीडिया पर उभरे इस ट्रेंड से निपटने में चीनी सरकार के पसीने छूट रहे हैं।

सभ्य कही जाने वाली दुनिया में आधी आबादी का इतिहास आज के यूक्रेन-रूस युद्ध से अलग नहीं रहा है। 1939 से 1945 के दूसरे विश्वयुद्ध में हमारी पुरखिनों के जिस्म ने भी युद्ध झेला था। जापानी सैनिकों के जिस्म की जरूरतों का ख्याल रखती जापानी सरकार ने कुंवारी लड़कियां उन्हें भेंट की थीं। ये लड़कियां जापान, कोरिया, चीन और फिलीपींस की थी। उस वक्त उन्हें 5000 से ज्यादा जापानी सैनिकों को खुश करना था। यानी एक लड़की को रोजाना तकरीबन 40 से 50 बलात्कार झेलने थे। विरोध करने वालियों को बंदूक की बट से पीट कर खत्म किया जाता था। सैनिक उन औरतों पर अपनी गोली जाया नहीं करते थे।

कुछ ऐसा ही तब भी हुआ, जब 1955 में वियतनाम और अमेरिका के बीच जंग हुई। अमेरिका की ताकतवर फौज ने वियतनाम की नाबालिग मासूम बच्चियों के शरीर पर भी युद्ध लड़ा था, जिसके नतीजे में युद्ध की समाप्ति के बाद एक वक्त में 50 हजार से ज्यादा बच्चों का जन्म हुआ। इस बेबी बूम में जन्मे ज्यादातर बच्चे कमजोर और बीमार थे। उन बच्चों को वियतनाम में बुई दोई यानी जीवन की धूल कहा गया।

शरीया कानून और इस्लामिक स्टेट बनाते हुए आईएसआईएस ने सीरिया युद्ध में अपने लड़ाकों के शारीरिक सुख के लिए यजीदी औरतों की मंडी लगाई। बगदादी के टॉर्चर कैंप से अपने चौथे प्रयास में बचकर निकलने में कामयाब हुई 18 साल की लामिया अजी बशर ने इसकी दास्तान दुनिया को सुनाई। 2018 में जब नोबेल पुरस्कारों का एलान हुआ तो उसमें कांगों के डॉ. डेनिस मुक्वेज का भी नाम था। डॉ. डेनिस ने युद्धों में यौन दासी के तौर पर इस्तेमाल हुई औरतों के जननांगों को रिपेयर किया था।

अब फिर से एक युद्ध शुरू हुआ है और फिर से मानवता को शर्मसार करने वाली ढेरों कहानियां बनकर तैयार हैं। यूक्रेन पर हुए हमले में जो तबाही हो रही है, उसके आंकड़े तो हर रोज सामने आ रहे हैं। मगर औरतों की रूह जिस तरह तबाह हो रही है, उस पर चुप्पी है। क्या अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर यह नहीं पूछा जाना चाहिए कि इसका हिसाब दुनिया कब देगी?(साभार एन बी टी)

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