वॉशिंगटन: यूक्रेन में चल रही भीषण जंग के बीच अमेरिका ने तेल के बाद अब रूसी हथियारों को लेकर भारत को धमकाना शुरू कर दिया है। अमेरिका के रक्षामंत्री लॉयड आस्टिन ने मंगलवार को अमेरिकी सांसदों से कहा कि रूसी हथियारों में निवेश करना भारत के हित में नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका चाहता है कि भारत रूसी हथियारों पर से अपनी निर्भरता को कम करे। विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिकी रक्षामंत्री रूस से हथियार नहीं लेने के लिए धमका रहे हैं लेकिन इसके बदले में वह भारत को घातक हथियार मुहैया नहीं करा रहा है जो हमें अभी रूस दे रहा है और चीन से निपटने के लिए नई दिल्ली को उसकी जरूरत है। अमेरिका उसे भारत को न देकर ऑस्ट्रेलिया को दे रहा है। आइए समझते हैं पूरा मामला…
अमेरिका के वार्षिक रक्षा बजट पर संसद की कार्यवाही के दौरान ऑस्टिन ने सदन की सशस्त्र सेवा समिति के सदस्यों के समक्ष कहा, ‘हम उनके (भारत) साथ बात करके उन्हें समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि रूसी उपकरणों में निवेश जारी रखना उनके हित में नहीं है। हम चाहते हैं कि वे (भारत) सभी प्रकार के रूसी उपकरणों में निवेश कम करें।’ अमेरिकी रक्षामंत्री लॉयड ने रूस से हथियार खरीदने पर भारत को यह चेतावनी ठीक उसी दिन दी है जब अमेरिका ने ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर आधुनिक ‘ब्रह्मास्त्र’ कहे जाने वाले हाइपरसोनिक मिसाइलों को बनाने का समझौता किया है।
अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने ऑकस सैन्य समझौता किया, भारत बाहर
अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया ने चीन के खतरे से निपटने के लिए ऑकस सैन्य समझौता कर रखा है। इसी ऑकस समझौते के तहत अमेरिका ऑस्ट्रेलिया को दुनिया में कहीं भी तबाही मचाने में सक्षम परमाणु पनडुब्बियों को बनाने की तकनीक दे रहा है। इस परमाणु पनडुब्बी डील के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि अब तक अमेरिका ने किसी भी देश को यह तकनीक नहीं दी है। एक तरफ जहां अमेरिका का बाइडन प्रशासन चीन से निपटने के लिए ऑस्ट्रेलिया को अत्याधुनिक हथियार दे रहा है, वहीं ड्रैगन की घुसपैठ का सामना कर रहे भारत को इन हथियारों को देने से मना कर रहा है। वह भी तब जब अमेरिका यह दावा करता है कि भारत हिंद प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका का भागीदार देश है।
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने हाइपरसोनिक मिसाइलों को तबाह करने की तकनीक पर भी काम शुरू करने का फैसला किया है। अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया अगर इस तकनीक को अगर बनाने में सफल हो जाते हैं तो चीन की हाइपरसोनिक मिसाइलों को तबाह करना आसान हो जाएगा। यह वही चीन है जो भारत की सीमा से कुछ ही दूरी पर सैकड़ों परमाणु मिसाइलों का अड्डा बना रहा है। लद्दाख में गलवान हिंसा के बाद भारत और चीन के करीब 1 लाख सैनिक आमने-सामने हैं लेकिन अमेरिका इस पर कोई विरोध नहीं उठा रहा है। उधर, अमेरिका यूक्रेन को रूसी हमलों के बाद अब तक कई अरब डॉलर के हथियार दे चुका है। यही नहीं इस पूरे मामले को लेकर संयुक्त राष्ट्र तक में आवाज उठा चुका है।
अमेरिका ने नहीं दिया था क्रायोजनिक इंजन, रूस ने की मदद
रूस भारत को ऐसी संवेदनशील तकनीक दे रहा है जो अमेरिका या कोई भी पश्चिमी देश भारत को नहीं दे रहा है। यह वही अमेरिका है जिसने भारत को क्रायोजनिक इंजन देने से मना कर दिया था, तब रूस हमारी मदद को आगे आया था। रूस ने हमें क्रायोजनिक इंजन दिए जिससे सीखकर भारत आज अपना खुद का क्रायोजनिक इंजन बना रहा है। इसी इंजन की मदद से अंतरिक्ष में रॉकेट भेज रहा है। इसके अलावा रूस के कई हथियार जैसे एस-400 अमेरिकी हथियारों से ज्यादा कारगर और सस्ते हैं। यही वजह है कि भारत ने अमेरिका के पेट्रियाट की जगह पर रूस से एस-400 को चुना है। अमेरिका हथियारों की सप्लाइ को लेकर विश्वसनीय नहीं है और कभी भी प्रतिबंध लगाकर भारत को सप्लाइ रोक सकता है। वहीं रूस हर मुश्किल में भारत का साथ दे रहा है। लद्दाख संकट के दौरान भारत ने हजारों करोड़ के हथियार रूस से खरीदे हैं।(साभार एन बी टी)