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मर्डर केस: मैं गीता पढ़ लूंगा, तुम कुरान पढ़ लो…

Crime

लखनऊ: 10 जनवरी 1976 की सर्द रात करीब एक बजे शहर के बेहद पॉश इलाके माल एवन्यू में एक लड़की चीख गूंजी। बड़े घरों के लोगों ने भले ही ध्यान नहीं दिया लेकिन कुछ दूरी पर झोपड़पट्टी में रहने वाले कुछ लोग दौड़े। सड़क किनारे बदहवास स्थिति में खड़ी बीस-पच्चीस साल की लड़की ने बताया कि कुछ गुंडे पीछे पड़े हैं। लोगों को देख उसकी कुछ हिम्मत जुटी और पास स्थित एनडी गुलाटी के घर का दरवाजा खटखटाया। दरवाजा खुलने पर जान का खतरा बताते हुए रात भर घर में जगह देने की गुहार लगाई। हालांकि मदद की जगह उसे पुलिस के पास जाने की सलाह देकर गुलाटी परिवार ने दरवाजा बंद कर लिया। बाकी लोग भी एक-एक कर चले गए और लड़की अकेली रह गई। इसी माल एवेन्यू में तीन दिन पहले एक छोटी बच्ची भी अकेले पाई गई थी, जिसे पुलिस ने अनाथालय पहुंचाया था।

फिर मिला लावारिश शव
30 जनवरी की सुबह हुसैनगंज पुलिस को माल एवन्यू के हैदर कैनाल में एक युवती का शव पड़ा होने की सूचना मिली। शिनाख्त नहीं होने पर लावारिस मानते हुए शव दफना दिया गया। 31 जनवरी को आलमबाग निवासी सीएस लाहिड़ी हुसैनगंज थाने पहुंचे और बताया कि छह जनवरी से 25 वर्षीय बेटी शुभ्रा लाहिड़ी अपनी भतीजी बबली के साथ लापता है। साथ ही बताया कि सात जनवरी को आलमबाग थाने में गुमशुदगी दर्ज करवाई थी। लावारिस बच्ची मिलने की सूचना पर लाहिड़ी के दामाद (बबली के पिता) सत्यदेव सिंह दस जनवरी अनाथालय पहुंचे और बेटी को घर ले आए थे। हालांकि शुभ्रा का कुछ पता नहीं चला और न ही पुलिस ने खास ध्यान दिया। बाद में कपड़ों से परिवारीजनों ने पहचाना कि शव शुभ्रा का ही था।

उठे थे कई सवाल
पुलिस की तफ्तीश में सामने आया कि शुभ्रा छह जनवरी को भतीजी बबली के साथ घर से निकली थी और लापता हो गई। वहीं, आलमबाग में मेडिकल स्टोर चलाने वाले डॉ. बक्शी ने 10 जनवरी की रात शुभ्रा के घर पहुंच सीएस लाहिड़ी से शुभ्रा के बारे में पूछा था। इस दौरान कहा था कि शुभ्रा ने उनके खिलाफ राष्ट्रपति को पत्र लिखा है। इसमें शिकायत की है कि उनके मेडिकल स्टोर पर नकली दवाएं मिलती हैं। डॉ. बक्शी ने इसे लेकर धमकी भी दी थी। सवाल यह भी उठा कि राष्ट्रपति को भेजा गया पत्र आरोपी को कैसे मिला? शुभ्रा की हत्या के पीछे उनका हाथ होने की आशंका हुसैनगंज थानाध्यक्ष के दिमाग में आया, लेकिन कोई साक्ष्य नहीं मिला।

…और उलझती गई गुत्थी
जिस दिन सीएस लाहिड़ी ने थाने पहुंच कपड़े देखकर अपनी बेटी शुभ्रा के होने की शिनाख्त की थी, उसी रात एक युवक उनके घर पहुंचा। अपना परिचय सेना की गुप्तचर शाखा के नायक के रूप में देते हुए कहा कि शुभ्रा को खोजने का जिम्मा दिया गया है। शक होने शुभ्रा के परिवारीजों ने सख्त रुख अख्तियार किया। पता चला कि युवक का असली नाम सलिल भट्टाचार्य है। इसके बाद उसे पुलिस को सौंप दिया गया। जांच में जुटी पुलिस ने माल एवन्यू में भी पूछताछ की। गुलाटी परिवार ने भी फोटो देखकर पहचान करते हुए बताया कि 10 जनवरी की रात यही लड़की उनसे पनाह मांग रही थी।

सीबीआई ने शुरू की थी जांच

मामले के तूल पकड़ने के बाद हत्याकांड की जांच पहले सीआईडी और फिर सीबीआई को सौंपी गई। सीबीआई ने नए सिरे से जांच शुरू की। पता चला कि शुभ्रा हत्याकांड के बाद हुसैनगंज से विमला नाम की एक युवती का अपहरण हुआ था। पुलिस ने 20 फरवरी को उसे अमीनाबाद के एक होटल से बरामद किया था। इस मामले में विमला के बहनोई अनिल सक्सेना के साथ ही वसीम अहमद, सतीश टंडन और मंजूर अहमद को गिरफ्तार किया गया था। विमला ने बयान दिया था कि शादी की बात करते हुए वसीम कहता था कि मैं गीता पढ़ लूंगा, तुम कुरान पढ़ लो। इस बयान से सीबीआई को जांच की नई दिशा मिली। दरअसल सीबीआई की पूछताछ के दौरान शुभ्रा की बुआ ने भी बताया था कि शुभ्रा ने उनसे कहा था कि एक मुसलमान उससे शादी करना चाहता है, जो कहता है कि मैं गीता पढ़ लूंगा, तुम कुरान पढ़ लो।

खुलने लगी पर्त दर पर्त
जांच में जुटी सीबीआई ने 15 अक्टूबर को पुराना किला निवासी शंकर को गिरफ्तार किया गया। पूछताछ में पता चला कि शुभ्रा की अनिल सक्सेना से दोस्ती थी और उसी ने वसीम से मिलवाया था। शुभ्रा पर वसीम खुले हाथ पैसे लुटाता था। जांच में अशोक विश्वकर्मा और विपिन बक्शी के नाम भी सामने आए। अशोक ठेकेदारी करता था, जबकि विपिन बक्शी उन्हीं डॉ. बक्शी का बेटा था, जिनकी शिकायत शुभ्रा ने राष्ट्रपति से की थी। दोनों अनिल सक्सेना और वसीम के दोस्त भी थे। शकर ने बताया कि छह जनवरी को अनिल, वसीम और अशोक के साथ कार से आलमबाग गया था। टेढ़ी पुलिया के पास से शुभ्रा को भी कार में बैठा लिया। उसके साथ एक छोटी बच्ची भी थी। चारों पूरे दिन शुभ्रा और बच्ची को लेकर इधर-उधर घूमते रहे। इसके बाद रात को शुभ्रा को माल एवेन्यू स्थित एक मकान में ले गए। रातभर शुभ्रा के साथ बिताने के अगली सुबह बच्ची को वहीं सड़क किनारे छोड़ दिया था। शुभ्रा भी घर जाने की जिद कर रही थी, लेकिन उसे नहीं छोड़ा। 10 जनवरी की रात शुभ्रा किसी तरह कुछ देर के लिए उनके चंगुल से निकल गई थी, लेकिन रात होते-होते उसे फिर पकड़ लिया। इस दौरान शुभ्रा लगातार धमकी देती रही कि चंगुल से छूटने पर उनके असली चेहरे पुलिस के सामने उजागर कर देगी। इसी वजह से उसकी हत्या कर दी गई।

सजा और फिर आजादी
मामला कोर्ट पहुंचा। पांच आरोपियों में शंकर और अशोक सरकारी गवाह बन गए। लंबी सुनवाई के बाद कोर्ट ने तीन आरोपियों विपिन, वसीम और अनिल को हत्या, साजिश और साक्ष्य छुपाने का आरोपी मानते हुए आजीवन कारावास की सजा दी। आरोपियों ने हाई कोर्ट में अपील की, जहां संदेह के आधार पर बरी हो गए। यह वाकया भले ही 45 साल पुराना हो, लेकिन आज भी चर्चा होती है, खासतौर पर पुराने वकीलों और न्यायाधीशों में।(साभार एन बी टी)

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