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भारत की ‘मानव कंप्यूटर’ शकुंतला देवी की आज जयंती ,जानें खास बातें

सामाजिक

आज ही के दिन यानी 4 नवंबर, 1929 को देश की ‘मानव कंप्यूटर’ यानी शकुंतला देवी का जन्म हुआ था। उनको मानव कंप्यूटर इसलिए कहा जाता था क्योंकि वह गणित की बड़ी से बड़ी गणनाओं को पल भर के अंदर दिमाग का इस्तेमाल करते हुए हल कर देती थीं। यही वजह थी कि उनको मानव कंप्यूटर कहा जाता है। उनकी जयंती पर आइए आज हम उनके बारे में खास बातें जानते हैं…
जीवन परिचय
शकुंतला देवी का जन्म बेंगलुरु, कर्नाटक के एक कन्नड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका जीवन गरीबी और तंगहाली में गुजरा। उनका लालन पालन गाविपुरम में हुआ था जो गुट्टाहल्ली का झोपड़पट्टी वाला इलाका था। उनके पिता एक सर्कस में काम करते थे जहां वे अपना करतब दिखाया करते थे। पिता की आय परिवार को चलाने के लिए काफी नहीं होती थी। अभावों में जीवन गुजरने के बाद भी उनकी प्रतिभा पर कोई असर नहीं पड़ा। गरीबी के अभाव में उनको कोई औपचारिक शिक्षा भी नहीं मिली। उनके जीवन का एक बहुत ही दुखद घटना भी है। एक तो आर्थिक तंगी की वजह से उनका दाखिला 10 साल की उम्र में सेंट थेरेसा कॉन्वेंट, चमाराजपेट में पहली क्लास में कराया गया। गरीबी की वजह से उनके पिता स्कूल की फीस देने में असक्षम थे जिस कारण 3 महीने बाद ही स्कूल से उनका नाम काट दिया गया। लेकिन स्कूल से नाम कटने पर उनकी प्रतिभा ठहर नहीं गई, उन्होंने अपनी प्रतिभा को निखारना शुरू रखा और बाद में दुनिया ने उनका लोहा माना।
यूं सामने आई प्रतिभा
तीन साल की उम्र में ही संख्याओं की गणना की असाधारण प्रतिभा उनमें नजर आने लगी। एक बार पिता के साथ वह ताश खेल रही थीं। ताश खेलने के दौरान उन्होंने संख्यात्मक गणना की अपनी प्रतिभा का परिचय दिया जो उनके पिता ने पहचान लिया। समय के साथ-साथ उनकी प्रतिभा में निखार आता गया। दुनिया के सामने उनकी गणना क्षमता और असाधारण प्रतिभा मैसुरु यूनिवर्सिटी और अन्नामलाई यूनिवर्सिटी में आयोजित कार्यक्रमों से सामने आई। बहुत जल्द ही उनकी प्रतिभा का लोहा पूरी दुनिया मानने लगी। मैसुरु यूनिवर्सिटी में जब उन्होंने अपनी प्रतिभा का परिचय दिया तो उनकी उम्र महज 6 साल साल थी। 1944 में वह अपने पिता के साथ लंदन चली गईं। धीरे-धीरे लंदन, अमेरिका और यूरोप में भी उनकी अंकगणितीय क्षमता की चर्चा होने लगे। उनके समय में ट्रूमैन हेनरी सेफर्ड जैसे असाधारण गणना करने वाले व्यक्ति भी मौजूद थे लेकिन शकुंतला की ख्याति दब नहीं पाई।
कमाल की प्रतिभा का प्रदर्शन
उनसे अगर पिछली सदी की कोई तारीख या दिन के बारे में पूछा जाता था तो जवाब देने में पल भर भी नहीं लगाती थीं। वह कंप्यूटर से भी तेज गणना करने में सक्षम थीं। साल 1977 की बात है, उनको अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी ने आमंत्रित किया था। उनको 201 का 23वां घात बताने को कहा गया जो उन्होंने 50 सेकंड के अंदर बता दिया था। उन्होंने कलम और कापी का भी इस्तेमाल नहीं किया।
18 जून, 1980 को उन्होंने इंपीरियल कॉलेज, लंदन में 13 अंकों की दो संख्याओं का गुणनफल सिर्फ 26 सेकंड्स में बता दिया था।
लेखन
गणनाओं के अलावा उन्होंने लेखन में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। उन्होंने गणित के अलावा ज्योतिषशास्त्र के बारे में भी लिखा। गणित और पहेलियों के बारे में जहां उन्होंने ‘फन विद नंबर्स’, ‘मैथब्लीट’ और ‘पजल्स टू पजल्स यू’ जैसी किताबें लिखीं, वहीं उन्होंने ज्योतिषशास्त्र पर ‘ऐस्ट्रॉलजी फॉर यू’ लिखी। उन्होंने 1977 में दी वर्ल्ड ऑफ होमोसेक्शुअल लिखी थी, जो समलैंगिकता पर पहली किताब थी।
सम्मान
1969 में फिलिपींस यूनिवर्सिटी ने उनको वुमन ऑफ द इयर के सम्मान से नवाजा।
उनको रामानुजन पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
1982 में उनका नाम ‘गिनेस बुक ऑफ वर्ल्ड रेकॉर्ड्स’ में दर्ज किया गया।
निधन
21 अप्रैल, 2013 को बेंगलुरु के एक अस्पताल में किडनी की बीमारी से उनका निधन हो गया।

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