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बस्तरवासियों के लिए आम है नक्सली हमला, मीडिया पर हमले से बेअसर बस्तर

Crime

दंतेवाड़ा
हाल ही में छत्तीसगढ़ चुनाव को लेकर नक्सलग्रस्त बस्तर इलाके में कवरेज के लिए पहुंचे नैशनल मीडियाकर्मियों पर हुए हमले ने जहां देश दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींचा है, वहीं बस्तर का यह इलाका ऐसी घटनाओं का आदी है, उसे यह सब रूटीन लगता है। यहां पिछले एक महीने में छह से सात आम नागरिकों पर हमला हो चुका है। जिसे लेकर आम लोगों में असंतोष तो है, लेकिन नक्सलियों के डर से वह कुछ बोल पाने में नाकाम हैं। वहां एक ओर जहां
नक्सली लोकतांत्रिक प्रक्रिया चुनावों का विरोध कर रहे हैं, वहीं उनके विरोध की बड़ी वजह उस इलाके, खासकर भीतरी इलाकों का विकास होना भी है। हाल में ही में बस्तर इलाके में विकास की कहानी को दिखाने पहुंची डीडी की टीम को भी इसी का खामियाजा भुगतना पड़ा।
गौरतलब है कि हालिया घटना के पीछे एक वजह दंतेवाड़ा तहसील में बन रही एक सड़क है, जो यहां के समेली से नीलावाया के बीच बन रही है। लगभग आठ किलोमीटर की इस सड़क पर चार से पांच किलोमीटर का काम पूरा हो चुका है। बस्तर साउथ के डीआईजी रतनलाल डांगी का कहना है कि सीआरपीएफ की सिक्यॉरिटी में बन रही इस सड़क का विरोध नक्सली कर रहे हैं, वे नहीं चाहते कि भीतरी इलाके में कनेक्टिविटी पहुंचे। इसलिए वे उस इलाके के भोले-भाले गांववालों को पढ़ा-लिखा कर शहर भेजते हैं कि प्रशासन से जाकर कहें कि हमें सड़क नहीं चाहिए। जबकि गांव वाले प्रशासन के सामने स्वीकारते हैं कि उन्हें जबरदस्ती भेजा गया है, लेकिन उनकी गुजारिश होती है कि सड़क का काम बंद न हो। डांगी का कहना है कि जिस तरह से पिछले कुछ समय से इस सड़क को मीडिया में कवरेज मिली थी, उससे भी नक्सली बौखलाए हुए हैं।
हालांकि यहां मीडिया पर हमला नई बात नहीं है। इससे पहले दंतेवाड़ा व सुकमा में हमला हो चुका है। कहा जा रहा है कि इस बार नक्सलियों ने मीडिया को घेरने की रणनीति भी बनाई है। कुछ समय पहले नक्सली समूह के वेस्ट बस्तर के इंचार्ज गणेश उइके ने बाकायदा प्रेस रिलीज जारी कर मीडिया से कहा था कि आप यहां के स्थानीय लोगों के मुद्दे उठाएं। हमारा काडर आपको परेशान नहीं करेगा। लेकिन उसके बाद हालिया हमला हुआ। यहां का प्रशासन मीडिया से की गई इस अपील को नक्सलियों की एक चाल बता रहा है।
बात सिर्फ सड़क की ही नहीं है, यहां विकास के दूसरे सूचकों को लेकर इनका गुस्सा निकलता रहता है। लगभग एक महीने पहले नक्सलियों ने पीएम आवास योजना के तहत घर विहीन लोगों को मिलने वाले पक्के घर को लेकर भी अपना विरोध दर्ज किया था। नक्सलियों द्वारा इन घरों के लाभार्थियों से जुड़े तकरीबन 35 पुरुषों को बुरी तरह मारा पीटा गया था। जबकि महज कुछ दिन ही पहले बारूदी सुरंग के चलते कुछ सुरक्षाकर्मियों की जान गई तो जिला पंचायत के एक सदस्य नंदलाल मुड़ामी के घर में घुसकर उस पर घातक हमला किया गया, जिसमें उनकी जान चली गई।
एक सरकारी मिडल स्कूल में टीचर का काम करने वाले जीतमन साहू का कहना था कि लंबे समय से नक्सलियों के आतंक में रह रहे गांववालों और आदिवासियों के मन में इनके खिलाफ विरोध बढ़ रहा है। यहां के आदिवासी चाहते हैं कि विकास की धारा से जुड़ें। बच्चों के स्कूल जाने से और मोबाइल कनेक्टिविटी से स्थितियां बदली हैं, लेकिन उनमें अभी पूरी तरह से विरोध की हिम्मत नहीं आई है।
वहीं, कुछ साल पहले झीरम घाटी में कांग्रेसी काफिले पर हुए नक्सली हमले में बची फूलोदेवी नेताम का कहना था कि यहां नक्सली हमला कोई नई बात नहीं है। नक्सली दहशत बनाकर रखते हैं। हर बार कुछ न कुछ करते हैं। फिर भी पोलिंग होती है। जनता वोट देने निकलती है। उल्लेखनीय है कि नक्सली बाकायदा यहां पैंपलेट व पोस्टर निकाल कर यहां लोगों से चुनाव का बहिष्कार करने की बात कर रहे हैं। एक ऐसा ही पोस्टर बुधवार को दंतेवाड़ा के बचेली इलाके में सामने आया, जहां नक्सलियों ने सत्ताधारी दल बीजेपी को फासीवादी बताते हुए चुनावों को फर्जी करार दिया। उन्होंने बीजेपी के लोगों को मार भगाने और वोट मांगने वाले राजनैतिक दलों को जनअदालत में खड़ा करने की बात कही।

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