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फर्जी दाखिले दिखाकर बटोरी स्कॉलरशिप, फिर कैसे खुली पोल?

Crime

गाजियाबाद
गाजियाबाद के स्कॉलरशिप घोटाला मामले में एसआईटी ने दो साल बाद एफआईआर दर्ज कर 14 को आरोपी बनाया है। एसआईटी को शैक्षणिक संस्थानों में 58 करोड़ रुपये की हेराफेरी के पुख्ता सबूत मिले हैं। तत्कालीन समाज कल्याण अधिकारी पारितोष कुमार श्रीवास्तव को भी एसआईटी ने एफआईआर में आरोपी बनाया है। इसके अलावा एसआईटी ने अग्रिम विवेचना के लिए 20 से अधिक लोगों को नोटिस भेजी है जिसमें आरोपियों के अलावा मामले के गवाह भी शामिल हैं। गाजियाबाद के पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा ऑफ मैनेजमेंट (पीजीडीएम) कोर्स वाले शैक्षणिक संस्थानों स्कॉलरशिप के नाम पर करोड़ों रुपये का घोटाला हुआ था। आगे जानिए, क्या है पूरा मामला-

क्या है पीजीडीएम स्कॉलरशिप घोटाला?
गाजियाबाद के पीजीडीएम कोर्स वाले शैक्षणिक संस्थानों में फर्जी प्रवेश दिखाकर स्कॉलरशिप घोटाला हुआ। आरोप है कि यह घोटाला समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों की मिलीभगत से किया गया था। साल 2013 से 2017 के दौरान हुए इस घोटाले की जांच के आदेश समाज कल्याण विभाग ने निदेशालय को दी गई थी। तीन सदस्यीय जांच दल ने आरोप सही पाए थे। टीम ने अपनी रिपोर्ट में एसआईटी जांच कराने की सिफारिश की थी जिसके बाद सरकार ने जून 2019 को एसआईटी को मामला सौंप दिया था।

स्कॉलरशिप घोटाले का कैसे हुआ खुलासा?
गाजियाबाद के मुरादनगर में रहने वाली राम सिंह नाम के शख्स ने तत्कालीन डीएम निधि केसरवानी से शिकायत की थी कि उस समय के समाज कल्याण अधिकारी पारितोष कुमार समेत अन्य अधिकारी और कर्मचारियों ने पीजीडीएम कोर्स संचालित करने वाले प्राइवेट संस्थानों से मिलीभगत कर करीब 200 करोड़ का स्कॉलरशिप घोटाला किया था। मामले की जांच में सामने आया था कि समाज क्लायण विभाग की ओर से गाजियाबाद में पीजीडीएम पाठ्यक्रम संचालित करने वाले संस्थानों को 58 करोड़ रुपये शुल्क प्रतिपूर्ति ही दी गई थी।

एसआईटी जांच में क्या आया सामने?
एसआईटी की पड़ताल में सामने आया है कि अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ने गाजियाबाद में पीजीडीएम पाठ्यक्रम चलाने के लिए शैक्षिक सत्र 2013-14 में 30, 2014-15 में 32, 2015-16 में 31 व 2016-17 में 30 संस्थानों को सीट स्वीकृत करते हुए अनुमोदित किया गया था। वहीं समाज कल्याण अधिकारी से मिली जानकारी के अनुसार इनमें से 20 संस्थानों में ही छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी।

इन संस्थानों को छात्रवृत्ति मिली उन्होंने करीब 58 करोड़ रुपये धनराशि निकाली। इन 20 संस्थानों के दोनों सत्र 2013-15, 2014-16, 2015-17 और 2016-18 के छात्रों में अधिकांश संस्थानों में 80 प्रतिशत से अधिक अनुसूचित जाति के छात्र थे जबकि सामान्य, पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जनजाति और अल्पसंख्यक वर्ग के 20 फीसदी छात्र थे।
छात्रवृत्ति पाने वाली मोनिका नामक छात्रा से पूछताछ में सामने आया कि उसने दिल्‍ली विश्वविद्यालय से वर्ष 2015 में बीकॉम की परीक्षा में 1350 में से 684 अंक हासिल किए लेकिन जिस बीएलएस इंस्टिट्यूट से उसे छात्रवृत्ति दी गई। उनकी ओर से उपलब्ध करवाए गए आवेदन फॉर्म में मोनिका द्वारा स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग शिक्षण संस्थान (यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली) से त्रिवर्षीय बीकॉम उत्तीर्ण किया है। इसमें छात्रा के 1200 में 636 अंक है, जो फर्जी प्रतीत हो रहे हैं।

छात्र ने दाखिला लिया नहीं और संस्थान ने स्कॉलरशिप ले ली!
इसी तरह बिजेन्द्र नामक छात्र के बयान से खुलासा हुआ कि उसने बीएलएस इंस्टिट्यूट में कभी एडमिशन ही नहीं लिया जबकि वहां से उसके नाम पर 86,492 रुपये छात्रवृत्ति संस्थान ने ली।
इन दोनों ही मामलों में समाज कल्याण अधिकारी पारितोष कुमार श्रीवास्तव की जानकारी में संस्थान ने गलती पाए जाने के बाद धनराशि को समाज कल्याण विभाग के खाते में वापस जमा करवाया गया। इसके बावजूद पारितोष कुमार ने संस्था की ओर से की गई अनियमितता और आपराधिक कृत्य के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की।

45 फीसदी छात्रों के सर्टिफिकेट नहीं
एसआईटी ने जांच के दौरान संस्थाओं के 626 छात्रों का भौतिक सत्यापन किया, जिसमें से लगभग 45 प्रतिशत छात्रों ने प्रमाण-पत्र उपलब्ध न करवाते हुए बताया कि प्रमाण-पत्र अब तक संस्थान ने दिया ही नहीं है। गाजियाबाद में पीजीडीएम कोर्स संचालित करने वाले संस्थानों से समाज कल्याण विभाग से छात्रवृत्ति प्राप्त करने से जुड़े दस्तावेज और समाज कल्याण विभाग गाजियाबाद से संस्थानों को छात्रवृत्ति प्रदान करने संबंधी अभिलेखों का मिलान करने पर बहुत भिन्नता पाई।(साभार एन बी टी)

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