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दिल्ली-मॉस्को-बीजिंग की उभरती ‘साझेदारी’ से टेंशन में US

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वॉशिंगटनः रूस और यूक्रेन के बीच जारी जंग के बीच अमेरिका दक्षिण एशिया में एक नई साझेदारी को लेकर चिंतित दिखाई दे रहा है। अमेरिका ने चीन से रूस की मदद नहीं करने की अपील की है। इसके अलावा उसने सोमवार को एक बयान जारी कर कहा कि वह रूस को वित्तीय या आर्थिक सहायता देने की कोशिश करने वाले देशों पर नजर बनाए हुए। अमेरिका का यह संकेत भारत की ओर हो सकता है क्योंकि हाल ही में भारत और रूस के बीच एक व्यापारिक सौदेबाजी की रिपोर्ट सामने आई थी। ऐसे में सवाल यह है कि एशिया के ये दो बड़े देश रूस को पश्चिमी देशों की ओर से लगाए जा रहे तमाम प्रतिबंधों से उबारने की कोशिश करेंगे या नहीं?

अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन ने सोमवार को रोम में शीर्ष चीनी राजनयिक यांग जिएची से मुलाकात की और रूस को संभावित सैन्य और वित्तीय सहायता पर वाशिंगटन की चिंताओं से अवगत कराया। यह मुलाकात अमेरिकी अधिकारियों के उस दावे के बाद हुई है, जिसमें कहा गया था कि मॉस्को चीन से सैन्य और आर्थिक सहायता मांगने की कोशिश कर रहा है। हालांकि,चीन ने इसे दुष्प्रचार करार दिया और खबर को खारिज कर दिया है।

रूस की मदद को आगे आने वाले देशों को लेकर अमेरिका की चिंताओं में अभी भारत साफतौर पर शामिल नहीं है लेकिन हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें बताया गया है कि नई दिल्ली रियायती कीमतों पर मॉस्को से कच्चा तेल तथा अन्य वस्तुएं खरीदने पर विचार कर रहा है। यह विनिमय रूपया-रूबल में किए जाने की खबर है। ऐसे में अमेरिका नई दिल्ली-बीजिंग के बीच तनाव और इंडिया-अमेरिका के बनते अच्छे रिश्तों के बीच एशिया में रूस-चीन और भारत की बढ़ती नई साझेदारी को लेकर काफी चिंतित है।

अमेरिका चीन पर दबाव बना रहा है कि वह रूस को बेलआउट करने की कोशिश न करें जबकि उसके एनर्जी डिपेंडेंट नाटो पार्टनर इस मामले में काफी छूट पाए हुए हैं। नाटो के तमाम सदस्य यूक्रेन में रूस के आक्रमण की निंदा करते हुए भी उससे गैस और तेल खरीदना जारी रखे हैं। भारत और चीन दोनों देशों ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की सीधे तौर पर निंदा करने से इंकार कर दिया था। दोनों की चिंताओं में एकमात्र कॉमन ग्राउंड नाटो का बढ़ता दायरा है, जिसकी वजह से रूस ने यूक्रेन के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया हुआ था।

हालांकि चीन और रूस ने हाल के वर्षों में अमेरिका पर सतर्क निगाह रखते हुए एक दूसरे से घनिष्ठ संबंध विकसित किए हैं। वहीं चीन के साथ तनाव के बीच भारत ने वाशिंगटन और मास्को दोनों के साथ अच्छे संबंधों के लिए कोशिश की है। इसका नतीजा यह है कि चीन को लेकर तो अमेरिका की मांगे सख्त और सार्वजनिक हैं लेकिन भारत पर उसका दबाव अपेक्षाकृत कम और मौन है। अमेरिका रूस पर नई दिल्ली की लंबे समय से चली आ रही सैन्य आपूर्ति निर्भरता को भी समझता है।

अमेरिकी अधिकारी और विश्लेषक यह चेतावनी दे रहे हैं कि अगर चीन रूस की मदद के लिए आगे आता है तो उसे वैश्विक मंच पर अलग-थलग पड़ने और आर्थिक दंड का भी सामना करना पड़ सकता है। इस बीच अमेरिकी अधिकारियों ने मास्को और बीजिंग के बीच भेद पैदा करने की भी कोशिश की है। उन्होंने चीन को यह समझाने की कोशिश की है कि यूक्रेन में रूस के आक्रमण की पुतिन की योजनाओं को वह पूरी तरह से समझ नहीं रहा है। अमेरिकी एनएसए Jake Sullivan के शब्दों में कहें तो यह बहुत हद तक संभव है कि पुतिन ने चीन से झूठ बोला हो, जैसा कि उन्होंने अन्य यूरोपीय देशों से बोला था कि उनकी यूक्रेन पर आक्रमण की कोई योजना नहीं थी।

कई अमेरिकी विशेषज्ञ मानते हैं कि ताइवान पर अपने दावे को ध्यान में रखते हुए चीन ने रूसी आक्रमण को हरी झंडी दे दी है। सीएनएन के एक राजनीतिक विश्लेषक John Rogin की एक बहस अमेरिका में इन दिनों काफी चर्चित है। John Rogin कहते हैं कि पुतिन याचक के रूप में बीजिंग गए थे और रूस के भविष्य को चीन को गिरवी रखने की कीमत पर युद्ध के लिए चीन का मौन समर्थन प्राप्त किया था। उन्होंने कहा कि शी जिनपिंग भी इस युद्ध में सह साजिशकर्ता हैं।

हालांकि रोगिन ने यूक्रेन और ताइवान के हालात को एक नजरिए से देखने पर पूर्ण सहमति नहीं जताई है। उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि शी जिनपिंग यूक्रेन के युद्ध के परिणामों पर नजर गड़ाए हुए हैं और इसके साथ ही वह यह भी देख रहे हैं कि पश्चिम में ताइवान की रक्षा करने की इच्छा है या नहीं। उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर चीन द्वीपीय लोकतंत्र पर हमला करता है तो पुतिन चीन की मौजूदा दोस्ती का बदला चुका सकते हैं।(साभार एन बी टी)

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