लखनऊ: उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी एक बार फिर खुद को समेट कर एकजुट दिखने की कोशिश करती नजर आ रही है। माहौल चुनावी है। मतलब, लोकसभा उप चुनाव होने वाले हैं। विधान परिषद चुनाव की प्रक्रिया शुरू हुई है। ऐसे मौके में पार्टी में बिखराव दिखना नेतृत्व क्षमता को कमजोर किसी भी स्थिति में नहीं दिखना चाहेगा। अखिलेश यादव ने आखिरी मौके पर अपने तेवर ढीले कर रुख में बदलाव के संकेत दिए। लेकिन, क्या अखिलेश यादव के रुख में बदलाव ऐसे ही हो गया? जी नहीं, अगर सभी घटनाओं का सूत्र जोड़ेंगे तो आपको तार राज्यसभा चुनाव 2022 के नामांकन के दिन से जुड़ते दिखेंगे। समाजवादी पार्टी के टिकट पर कपिल सिब्बल का नामांकन होते ही जिस प्रकार से स्थितियां बदली हैं, उसने प्रदेश में किसी बड़े सियासी उठापटक के कयासों को तत्काल विराम लगा दिया है। इस पूरी कवायद ने समाजवादी पार्टी से नाराज चल रहे विधायक शिवपाल यादव का पूरा गेम प्लान बिगाड़ दिया है।
अंतरविरोधों से जूझ रही समाजवादी पार्टी के लिए कपिल सिब्बल वन स्टॉप सॉल्यूशन बनकर आए हैं। 25 मई को सिब्बल ने लखनऊ में सपा के समर्थन से निर्दलीय राज्यसभा का पर्चा भरा और पार्टी के लिए चीजें ठीक होती दिखने लगीं। सबसे पहले उनके नामांकन पर पार्टी और नेतृत्व से खासा नाराज चल रहे आजम खान ने खुशी जाहिर की। मुलायम परिवार के भीतर भी प्रो. रामगोपाल यादव की नाराजगी को दूर करने का काट खोजा गया। जावेद अली खान के जरिए वे साधे गए। लेकिन, इसके बाद भी आजम खान की नाराजगी अखिलेश से बनी हुई दिखी। 20 मई को सीतापुर जेल से बाहर आने के बाद आजम लखनऊ तो आए, लेकिन विक्रमादित्य मार्ग की करीब 8 किलोमीटर की दूरी रामपुर से अधिक हो गई। विधानसभा सदस्यता की शपथ लेने के बाद वे सीधे रामपुर चले गए। इस दरम्यान अगर कोई नेता खुश था, तो वे थे शिवपाल यादव। लेकिन, अब शायद उनका गेमप्लान उतना प्रभावी नहीं रह गया है।
सीतापुर से लेकर रामपुर तक रहे साथ
शिवपाल जानते हैं कि वे अकेले कुछ खास नहीं कर पाएंगे। समाजवादी पार्टी से उनकी आधिकारिक विदाई तो 2017 में ही हो चुकी है। इसे समाजवादी पार्टी के नेता संगठन के लोग भी समझ चुके हैं। यादवलैंड में मुलायम को परिवार को एकजुट दिखाने की कोशिश के तहत भले ही अखिलेश ने उन्हें यूपी चुनाव के समय में टिकट दिया। पार्टी का स्टार प्रचारक बना दिया, लेकिन भूमिका पार्टी में सोफा पर बैठे अखिलेश और मुलायम के बीच डंडे पर बैठे शिवपाल की ही रही। ऐसे में उन्होंने आजम की नाराजगी का सुना तो दौड़े सीतापुर जेल हो आए। बाहर निकल कर खूब सुनाया। फिर जिस दिन आजम बाहर निकल रहे थे, जेल गेट पर परिजनों के साथ केवल शिवपाल ही नजर आए थे। जिला स्तर तक का एक सपा नेता सीतापुर जेल नहीं पहुंचा था। इन स्थितियों ने शिवपाल को हमले का मौका दिया और उन्होंने गंवाया नहीं।
सिब्बल की एंट्री, शिवपाल का हाथ खाली
तमाम सियासी समीकरणों के बीच शिवपाल यादव आजम खान के साथ मिलकर सपा में ही एक अलग धरा विकसित करने की योजना तैयार कर रहे थे। या फिर एक अलग संगठन के खड़ा करने की कोशिश थी। वह प्रगतिशील समाजवादी पार्टी को पुनर्जीवित करने की भी हो सकती थी। लेकिन, कपिल सिब्बल की एंट्री हुई और शिवपाल का हाथ खाली ही रह गया। अकेले दम पर शिवपाल ने वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा था, किसी भी सीट पर उनकी पार्टी खड़ी भी नहीं दिख पाई। ऐसे में बिना एक और मजबूत चेहरे के पार्टी को फिर से खड़ा करने और उसे मजबूत बनाने की रणनीति को सफल होने के मंसूबे के बीच सिब्बल आकर खड़े हो गए। उन्होंने ऐसा जाल फैलाया कि अखिलेश और आजम की न केवल मुलाकात हुई, बल्कि दो घंटे से अधिक बात भी हुई। राज्य से लेकर देश की राजनीति के मसलों पर। ऐसे में अब शिवपाल क्या करेंगे? देखना दिलचस्प रहेगा।(साभार एन बी टी)