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कोरोना वैक्सीन लेने के बावजूद लोग संक्रमित क्यों हो रहे हैं…

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नई दिल्ली

कोरोना वैक्सीन ले चुके ज्यादातर लोग पहले-पहल यह सोचकर निश्चिंत हो गए कि अब शायद वे पूरी तरह सुरक्षित हो चुके हैं. वे कोरोना संक्रमण के शिकार नहीं होंगे. लेकिन कोरोना के ओमिक्रॉन वेरिएंट ने उनकी इस निश्चिंतता को चिंता में बदल दिया है. क्योंकि ओमिक्रॉन भले अधिक घातक सिद्ध न हो रहा हो, लेकिन संक्रमित बहुतों को कर रहा है. बिना भेदभाव के, बहुत तेजी से. इसलिए सवाल स्वाभाविक है कि वैक्सीन लेने के बावजूद लोग कोरोना संक्रमित क्यों हो रहे हैं? क्या वैक्सीन कारगर नहीं है? या फिर कोई और कारण है? जवाब तलाशते हैं..

वैक्सीन लेने के बावजूद संक्रमण, आखिर ये है क्या?

अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (US-CDCP) सहित अन्य बड़े संगठनों के विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों ने वैक्सीन लगने के बावजूद संक्रमित होने की स्थिति को ब्रेक-थ्रू इन्फेक्शन कहा है. ‘द कन्वरसेशन’ वेबसाइट के मुताबिक, ब्रेक-थ्रू इन्फेक्शन वाले लोग ठीक उसी तरह अन्य लोगों को संक्रमित कर सकते हैं, बल्कि कर भी रहे हैं, जैसे कि सामान्य संक्रमण वाले करते हैं. क्योंकि इन लोगों की नाक में भी उतनी ही संख्या में वायरस इकट्‌ठा हो सकते हैं, जितने टीका न लेने वालों की नाक में होते हैं. यानी यहां तक की स्थिति दोनों तरह के लोगों की एक जैसी है.

ब्रेक-थ्रू इन्फेक्शन हो क्यों रहा है

ब्रेक-थ्रू इन्फेक्शन (BreakThrough Infection) के बारे में ब्रिटेन में हुए दो हालिया अध्ययनों के मुताबिक, कोरोना तो किसी भी बीमारी की कोई भी वैक्सीन 100% सुरक्षा नहीं देती. दूसरा- इस वक्त दुनियाभर में मौजूद कोरोना वैक्सीन ऐसी हैं, जिनका प्रभाव 4-6 महीने ही रहता है. इसके बाद इनके जरिए शरीर को मिली रोग-प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है. ‘द कन्वरसेशन’ के मुताबिक इस स्थिति को ‘वेनिंग इम्युनिटी’ (Waning Immunity) कहा जाता है. तीसरी बात- जब दुनियाभर में बड़े पैमाने पर वैक्सीन लग रही थी, लगभग उसी समय कोरोना का अब तक का सबसे घातक डेल्टा वैरिएंट कहर बरपा रहा था. इससे वेनिंग इम्युनिटी की रफ्तार और तेज हो गई. तिस पर चौथी बात- लोगों की लापरवाही, जो अपनी जगह है. क्योंकि वैक्सीन लगने के बाद अधिकांश लोगों में मास्क न लगाने, आपस की दूरी न बरतने, बार-बार हाथ न धोने जैसी बेपरवाही देखी गई है. इन स्थितियों के कारण वैक्सीन लोगों को अब तक कोरोना से वह सुरक्षा नहीं दे पाई है, जैसी उम्मीद की जा रही थी.

तो क्या अब भी खतरा बना हुआ है?

बिल्कुल. क्योंकि वैक्सीन लगवा लेने का मतलब यह अब भी नहीं है कि कोरोना का संक्रमण नहीं होगा. दुनिया में सबसे पहले अपनी पूरी आबादी का टीकाकरण कर लेने वाले इजरायल से मिले आंकडे बता रहे हैं कि वहां भी अब कोरोना संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं. यहां इजरायल से ही जुड़ी दो और बातें ध्यान रखने की हैं. पहली- वहां दिसंबर-2020 में कोरोना का टीकाकरण शुरू हुआ था. साल 2021 के मध्य तक वहां लगभग पूरी आबादी को टीका लग चुका था. मतलब सभी लोगों को टीका लगवाए छह महीने से ज्यादा हो चुके हैं. इसलिए वेनिंग इम्युनिटी की स्थिति भी वहां पहले बनी है. दूसरी बात- टीकाकरण के बाद हुए संक्रमण के कारण जो लोग अस्पताल में भर्ती हुए, उनमें 87% लोग 60 साल से ऊपर के हैं. मतलब अधिक उम्र के और पहले से अन्य बीमारियों से ग्रस्त लोगों को खतरा अधिक है. टीका लगवाने के बाद भी.

तो क्या टीका लगवाने का कोई मतलब नहीं

ऐसी बात नहीं है. कोरोना के सबसे संक्रामक ओमिक्रॉन वेरिएंट का जिस दक्षिण अफ्रीका में सबसे पहले पता चला, वहीं का ताजा अध्ययन है. इसमें बताया गया है कि ओमिक्रॉन ने सभी तरह के लोगों को तेजी से संक्रमित किया. जिन्हें टीका लगा उन्हें भी, जिन्हें नहीं लगा उनको भी. लेकिन सिर्फ 28% फीसदी लोगों को अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आई. क्योंकि कोरोना वैक्सीन ने संक्रमण को फेंफड़ों तक नहीं पहुंचने दिया. भारत में भी, संक्रमित मामलों की सर्वाधिक संख्या वाले राज्य महाराष्ट्र से लगातार खबरें आ रही हैं. इनमें बताया जा रहा है कि 80 से 90% तक संक्रमित बिना लक्षणों वाले हैं. उन्हें अस्पताल में भर्ती करने की नौबत नहीं आ रही है. इनमें अधिकांश वही लोग हैं, जो वैक्सीन ले चुके हैं. मतलब, वैक्सीन हमें गंभीर संक्रमित होने से बचा रही है. और मौत के मुंह में जाने से भी.

आगे क्या संभावनाएं हैं?

सिर्फ दो तरह कीं. एक- चूंकि वैक्सीन  का असर 4-6 महीने में खत्म हो रहा है. इसलिए सभी लोगों को बूस्टर डोज लेना पड़ सकता है. शायद एक से अधिक बार भी. दूसरा- वैक्सीन को अधिक असरदार बनाए जाने का सिलसिला जारी रहने वाला है. नए अधिक प्रभावी टीके आ सकते हैं. वे शायद कोरोना के असर को पूरी तरह खत्म कर सकेंगे.(साभार न्यूज़18)

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