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कांशीराम के भाई बोले- मायावती ने बेवकूफ बनाया

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रोपड़. पंजाब के रोपड़ जिले का एक गांव है खवासपुर. इस गांव की खास बात ये है कि यह बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम का पैतृक गांव है. गांव के बीचों-बीच कांशीराम की एक आदमकद प्रतिमा स्थापित हैं, जहां से महज 500 मीटर की दूरी पर उनका घर भी है. कांशीराम के छोटे भाई हरबंश सिंह अपने परिवार के साथ यहां रहते हैं. इस घर मे कांशीराम की तमाम यादें उनकी तस्वीरों की शक्ल में नजर आती हैं. इन्हीं में एक तस्वीर उनकी बसपा की मौजूदा प्रमुख मायावती के साथ भी है. हालांकि इसमें मायावती को पहचानना किसी के लिए भी थोड़ा मुश्किल जरूर हो सकता है और हरबंश सिंह के लिए तो उनका जिक्र भी. उनका प्रसंग आते ही वे पहले तैश में कहते हैं, ‘मायावती तो यहां से उत्तर प्रदेश चली गईं. यहां की उन्होंने कभी परवाह तक नहीं की. ये हमारा घर देखिए कितना साधारण सा है.’ फिर बात करते-करते भावुक हो जाते हैं, ‘उन्होंने हमारे भाई को हमसे छीन लिया और उन्हें भी बेवकूफ बनाया. उनके पास जो था, उनसे भी सब ले लिया. उनके मन में बसपा संस्थापक के प्रति कोई सम्मान नहीं. रब उन्हें माफ नहीं करेगा.’

हरबंश सिंह खवासपुर की दलित कॉलोनी में रहते हैं. इस गांव में दाखिल होते ही बसपा के नीले झंडों के साथ शिरोमणि अकाली दल-बादल (SAD) के झंडे बहुतायत नजर आते हैं. ये इस बात की मुनादी करते हैं कि इस पूरे इलाके में दलित आबादी अच्छी खासी प्रभावशाली है. वैसे तो पूरे पंजाब में ही है. इसीलिए कांग्रेस दलित-सिख चरणजीत सिंह चन्नी को अपना मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बनाया है. वहीं, अकाली दल ने बसपा के साथ गठबंधन (SAD-BSP Alliance) किया है. हालांकि उसका यह दांव कारगर कितना है, इसका अंदाजा खवासपुर और उसके आसपास के इलाकों के दलितों से बातचीत में ही होने लगता है. मसलन- हरवंश सिंह ही कहते हैं, ‘मैं तो इस गठबंधन को बिल्कुल भी वोट नहीं दूंगा. दोनों ही पार्टियां भ्रष्ट हैं. उन्हें सिर्फ हमारे वोट की चिंता है. हमारी फिक्र नहीं है. इसलिए हमें भी उनकी परवाह नहीं करनी. हम उन्हें इस चुनाव में सबक सिखाएंगे.’ अन्य लोगों से बात करने पर भी लगभग इसी तरह की बातें सामने आती हैं. यहां बताते चलें कि यह गांव रोपड़ विधानसभा क्षेत्र और आनंदपुर साहिब लोकसभा सीट के तहत आता है. यह लोकसभा क्षेत्र पहले अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हुआ करता था. अभी कुछ समय पहले ही सामान्य सीट के तौर पर चिह्नित किया गया है.

बसपा का लगातार घट रहा है वोट-प्रतिशत
यहां एक और बात ध्यान देने की है कि बसपा (BSP) का वोट-प्रतिशत पंजाब में लगातार बीते कुछ चुनावों से कम हुआ है. अभी 2019 के लोकसभा चुनाव में ही पार्टी को महज 9.6% वोट मिले थे. वोट-प्रतिशत के लिहाज से यह उसका सबसे खराब प्रदर्शन था. इसके बावजूद अकाली-बसपा गठबंधन के स्थानीय उम्मीदवार दलजीत सिंह चीमा अपनी और अपने गठबंधन की जीत का दावा करते हैं. वे कहते हैं, ‘चन्नी यहां से नहीं जीत रहे हैं. वह तो दलित भी नहीं हैं. दलित किसी को लूटते नहीं हैं.’ वहीं कांग्रेस के उम्मीदवार बरिंदर सिंह ढिल्लों उल्टा सवाल दाग देते हैं, ‘जब वे अपने संस्थापक कांशीराम के परिवार की भी फिक्र नहीं कर पाए, तो बाकी दलित समुदाय की क्या करेंगे?’ इन दोनों के बीच आम आदमी पार्टी (AAP) ने दिनेश चड्‌ढा को मैदान में उतारकर लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है. हालांकि बाजी किसके हाथ लगेगी यह अभी 20 फरवरी को होने पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए होने वाले मतदान में ही तय हो जाएगा. और 10 मार्च को इसका पता चल ही जाएगा.(साभार न्यूज़18)

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