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आज उत्तराखंड के पुरोहित इतना खुश क्यों हैं?

सामाजिक

देहरादून
उत्तराखंड में चारधाम तीर्थस्थलों- केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री, गंगोत्री सहित 50 से अधिक मंदिरों का प्रबंधन और प्रशासन वापस से साधु-संतों के पास आ गया है। राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (रिटायर्ड) ने पिछले साल दिसंबर में विधानसभा में पास हुए देवस्थानम बोर्ड ऐक्ट को वापस लेने संबंधी बिल को मंजूरी दे दी है। इस फैसले से पर्वतीय राज्य के पुरोहितों में खुशी का माहौल है।

चारधाम देवस्थानम बोर्ड के गठन से पहले केदारनाथ और बद्रीनाथ धामों का प्रबंधन देख रही बद्री-केदार मंदिर समिति ही काम जारी रखेगी। वहीं यमुनोत्री और गंगोत्री मंदिरों का प्रबंधन स्थानीय पुजारी और संत ही करेंगे। तीर्थस्थलों से जुड़े फैसलों का नियंत्रण नौकरशाहों के हाथों में दिए जाने का विरोध पुजारी पिछले 2 सालों से कर रहे थे।

पुजारियों के संगठन चारधाम तीर्थ पुरोहित हकहकूकधारी महापंचायत के प्रवक्ता ब्रजेश सती ने इस फैसले पर कहा, ‘यह हमारी कठिन परिश्रम और एक क्रूर बोर्ड के विरोध की दृढ़ शक्ति की जीत है। बिल को विधानसभा में पास करने के 77 दिनों के बाद वापस लेने की मंजूरी राजभवन की तरफ से मिली है। हमें लगता है कि यह काम पहले हो सकता था। लेकिन अब यह हो चुका है और हम इसका स्वागत करते हैं।’

उत्तराखंड में सत्तारूढ़ बीजेपी की सरकार ने माता वैष्णो देवी तीर्थस्थान बोर्ड की तर्ज पर नवंबर 2019 में एक बोर्ड के गठन का प्रस्ताव रखा था। तत्कालीन सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत की अगुवाई में हुई कैबिनेट की बैठक में चारधाम और अन्य मंदिरों के प्रबंधन के लिए बोर्ड के गठन का प्रस्ताव रखा गया था। इसके बाद दिसंबर 2019 में इस बिल को विधानसभा में पेश किया गया। फरवरी 2020 में इस संबंध में नोटिफिकेशन भी जारी हो गया था।

प्रदेश सरकार के इस कदम का व्यापक विरोध हुआ था। संत और पुजारी समाज इसे सदियों पुरानी परंपरा में हस्तक्षेप के तौर पर मान रहा था। पुष्कर सिंह धामी ने सीएम बनने के बाद अगस्त में इस मामले की पड़ताल के लिए कमिटि गठित की थी। इसके स्वरूप राज्यपाल की तरफ से देवस्थानम बोर्ड ऐक्ट को वापस लेने संबंधी बिल को मंजूरी मिल गई है।

वहीं इस फैसले के पीछे राजनीतिक कारणों को भी बताया जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि पुरोहित समाज गढ़वाल क्षेत्र के कम से कम 17 विधानसभा सीटों पर प्रभाव रखता है। इस मुद्दे से सत्तारूढ़ बीजेपी को नुकसान होता दिख रहा है लेकिन यह और भी अधिक हानिकारक होता, अगर ऐक्ट को वापस नहीं लिया गया होता। गढ़वाल में कई सीटों पर बीजेपी के प्रत्याशियों को जरूरी राहत मिल गई है।(साभार एन बी टी)

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